-धीरेन्द्र राहुल-

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
एक स्वप्रेरित और ऊर्जावान वन अधिकारी किस तरह जीर्ण – शीर्ण और पूरी तरह बरबाद शिकारगाह की सूरत बदल देता है, इसे देखना हो तो जगपुरा चले आइए। यहां किसी जमाने में ऐसा सघन जंगल था जिसे असूर्यपश्या जंगल कहा जा सकता था। जिससे होकर सूरज की किरणें धरती तक नहीं पहुंच पाती थी। इसे रियासत काल में दरबार बाग भी कहा जाता था।
इतिहासविज्ञ फिरोज अहमद बताते हैं कि कोटा तो सघन वन की गोद में बसा था। विभिन्न हाड़ा राजाओं के काल में जगपुरा, अभेड़ा, उम्मेदगंज, अकेलगढ़, रांवठा और दरा में शिकारगाह जिन्हें माले कहा जाता है, थे। इनका निर्माण किसी एक राजा के काल में नहीं हुआ है। दो तरह के माले होते थे, एक कच्चे जो पेड़ पर मचान के रूप में। दूसरे पक्के माले जैसा चित्र में दिखाई दे रहा है। यह लोहे के जंगलों से घिरा तीन मंजिला है। सबसे ऊपर की मंजिल पर बैठने के लिए शिला की बैंच बनाई हुई है। सौ – पचास लोग हांका कर बाघ को घेर कर लाते थे। माले पर बैठे महाराव, उनके अमीर उमराव और अंग्रेज अफसर बन्दूकों से बाघ का शिकार करते थे।
कोटा- झालावाड़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित जगपुरा में यह शिकारगाह बहुत विशाल क्षेत्र में फैली थी। जगपुरा गांव के सामने से निकल रही सड़क फोरलेन बनने पर 500 मीटर पीछे खिसक कर आई तो सघन राड़ी समाप्त हो गई।
पीछे मलंगशाह का कब्रिस्तान बना लिया गया है लेकिन शुक्र है कि उसके घेरे में पेड़ सुरक्षित हैं और कुल्हाड़े से बचे रहे।
शेष बचे दरबार बाग को अपने पुराने वैभव में लौटाने का बीड़ा जिस वन अधिकारी ने उठाया उनका नाम जैराम पाण्डेय हैं। उन्होंने सरकार से डेढ़ करोड़ रूपए स्वीकृत करवाए जिससे इस पुरानी शिकारगाह को ‘इको ट्रेक’ के रूप में विकसित किया जा रहा है। यानी ऐसा स्थान जहां आम आदमी भी जाकर प्रकृति का आनन्द ले सके।
दरबार बाग की नष्ट-भ्रष्ट चारदीवारी की मरम्मत कर दी गई है। उसे ऊंचा उठाया गया है। पहाड़ी पर से आने वाले पानी को रोकने के लिए छोटी तलाई खोद दी गई है। दूसरी तरफ से आने वाले पानी की निकासी के लिए ड्रेन बना दी गई है। लोग दरबार बाग में घूम सके। इसके लिए मिट्टी के पाथ वे बनाए जा रहे हैं। बाग में बीस हजार फलदार वृक्ष लगाए जा रहे हैं जिसमें आम, जामुन, करौंदा के पेड़ लगाए जा रहे हैं। मजबूत गेट लगाया गया है और 24 घंटे के लिए चौकीदार की व्यवस्था की गई है। पाण्डेय जी ने बताया कि यहां गाजर घास की समस्या है, उसे भी हटाया जाएगा। बहरहाल पर्यटन के शौकिन लोगों के लिए एक और शानदार जगह तैयार हो गई है।
गुरूवार सुबह ‘ हम लोग’ संस्था के अध्यक्ष डाॅ सुधीर गुप्ता, कविवर अम्बिकादत्त, औषधीय वृक्षों के सलाहकार पृथ्वीपाल सिंह और शिवस्वरूप जोशी के साथ दरबार बाग का अवलोकन किया। डाॅ सुधीर का कहना था कि एक बार जब हम आए थे, तो यह सुनसान पड़ा था। शिकारगाह में हजारों की संख्या में हजामत बनाने की उपयोग में ली गई ब्लैड पड़ी थी। पता नहीं किसने लाकर इकट्ठा की थी।
उन्होंने कहा कि ‘ हम लोग’ इसे गोद लेने का इच्छुक है। इसके लिए आवेदन करेंगे।