करवा चौथ आज

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-राजेन्द्र गुप्ता-

rajendra gupta
राजेन्द्र गुप्ता

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हिंदू धर्म में करवा चौथ का पर्व बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यह सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए रखे जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य, सुखी जीवन और लंबी आयु की कामना करते हुए निर्जला उपवास रखती हैं। यह व्रत शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद खोला जाता है।

पूजा का शुभ मुहूर्त
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करवा चौथ के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5.46 बजे से लेकर 7.02 बजे तक रहेगा। करवा चौथ के दिन चंद्रोदय का समय शाम 7.54 बजे रहेगा। इसके बाद आप चंद्र दर्शन करके अपने व्रत का पारण कर सकती हैं।

करवा चौथ व्रत की तिथि  
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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को हर साल करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। इस साल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का आरंभ 20 अक्तूबर 2024 को सुबह 6:46 बजे से होगा और यह अगले दिन 21 अक्तूबर 2024 को सुबह 4:16 बजे समाप्त होगी।

क्यों खाई जाती है सरगी?  
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करवा चौथ व्रत निराहार और निर्जला रखा जाता है। ऐसे में घर की बड़ी महिलाएं आशीर्वाद के तौर पर व्रती महिलाओं को व्रत शुरू करने से पहले सेहतमंद भोजन करवाती हैं, ताकि व्रत के दौरान उन्हें किसी तरह की कठिनाई का सामना न करना पड़े।
सरगी की रस्म में सास अपनी बहु को फल, मिठाइयां, मेवे, खीर और कम तली भुनी चीजें खिलाती है। इसे सास का बहु के लिए आशीर्वाद माना जाता है। जिन व्रतियों की सास नहीं हैं वह अपनी जेठानी या अपने से बड़ी महिलाओं से सरगी ले सकतीं हैं।

करवा चौथ का व्रत का महत्व
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मान्यताओं के अनुसार, करवाचौथ का व्रत सभी सुहागन महिलाएं निर्जला रहकर अपनी पति की लंबी आयु की कामना के लिए रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को माता पार्वती ने भी भगवान शिव के लिए रखा था। एक अन्य मान्यता के अनुसार, एक बार जब देवताओं का राक्षसों के साथ युद्ध चल रहा था तो उस समय सभी राक्षस देवताओं पर भारी पड़ रहे थे। तो सभी देवी ब्रह्मदेव के पास पहुंचते हैं और उन्हें सारी बात बताई और उनसे कहा कि वह अपनी पतियों की रक्षा के लिए क्या कर सकती हैं। तब ब्रह्मदेव ने उन्हें करवा चौथ का व्रत रखने का सुझाव दिया।ब्रह्मदेव के बताए अनुसार, सभी महिलाओं ने करवा चौथ का व्रत रखा जिस वजह से देवताओं की रक्षा हो सकी। तभी से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है।

करवा चौथ के व्रत की कथा
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करवा चौथ की कहानी है कि, देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थीं। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और नदी में खिंचने लगा। मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंचीं और पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते मगर को देखा। करवा ने तुरंत एक कच्चा धागा लेकर मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व के कारण मगरमच्छा कच्चे धागे में ऐसा बंधा की टस से मस नहीं हो पा रहा था। करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के प्राण संकट में फंसे थे।
करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवनदान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा। यमराज ने कहा मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है और तुम्हारे पति की आयु पूरी हो चुकी है। क्रोधित होकर करवा ने यमराज से कहा, अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं आपको शाप दे दूंगी। सती के शाप से भयभीत होकर यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दिया। इसलिए करवाचौथ के व्रत में सुहागन स्त्रियां करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस निकाल लिया वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना।
करवा माता की तरह सावित्री ने भी कच्चे धागे से अपने पति को वट वृक्ष के नीचे लपेट कर रख था। कच्चे धागे में लिपटा प्रेम और विश्वास ऐसा था कि यमराज सावित्री के पति के प्राण अपने साथ लेकर नहीं जा सके। सावित्री के पति के प्राण को यमराज को लौटाना पड़ा और सावित्री को वरदान देना पड़ा कि उनका सुहाग हमेशा बना रहेगा और लंबे समय तक दोनों साथ रहेंगे।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175

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