
-एएच जैदी-

(नेचर एवं टूरिज्म प्रमोटर)
कोटा। कोचिंग सिटी कोटा की एक पहचान यहां के परकोटे और आकर्षक तथा विशाल दरवाजों की वजह से थी। पहले चारदिवारी की रक्षा के लिए चार दरवाजे थे। इन दरवाजों के भीतर कोटा शहर सुरक्षित माना जाता था। इनके अलावा किशोरपुरा, केथूनीपोल और बर्जिघाट के दरवाजे थे। साज सज्जा के बाद अब ये दरवाजे एक बार फिर कोटा को पहचान देने लगे हैं।
रियासत काल में इन दरवाज़ों के रख रखाव पर विशेष धयान दिया जाता था। लेकिन समय के साथ अनदेखी की वजह से ये दुर्दशा का शिकार हो गए थे। न तो ये दरवाजे खुलते थे और न ही इन पर रंग रोगन किया जाता था। ये नाम के ही दरवाजे बनकर रह गए और यहां तक कि अतिक्रमण तक का शिकार हो गए। जब स्मार्ट सिटी का काम शुरू हुआ तो इंटेक के निखिलेश सेठी ने यूडीएच मिनिस्टर शांति धारीवाल साहब का ध्यान इन दरवाजों की दुर्दशा की ओर दिलाया तथा इनको आकर्षक स्वरुप में लाने के लिए योजना बनाकर कायाकल्प करने का सुझाव दिया।इन्ही के कार्य काल मे कोटा के सभी दरवाज़ों को बहुत खूबसूरती प्रदान की है। मजबूत लकड़ी के दरवाज़ों की मरम्मत कर खोलने बन्द करने लायक बनाया है। ट्रैफिक को बंद करना हो तो पैदल चलने वाले छोटी खिड़की से आ जा सकते हैं।

जो नालियां जाम हो जाती थीं न केवल दरवाजों की लकडी को खराब करने के साथ आसपास गंदगी पैदा करती थीं उन्हें भी दुरुस्त करा दिया है। इन दरवाजों की छतों पर परंपरागत पेंटिंग का कार्य कराया गया। इससे उभरी खूबसूरती को देख यूडीएच मिनिस्टर धारीवाल ने साइड की दीवारों पर भी कलात्मक पेंटिंग कराने के निर्देश दिए।

इससे अब ये दरवाज़े निखर गए हैं और भगवान मथुरा धीश के दर्शन को आने वाले भक्त और पर्यटक यहां सेल्फी ले रहे हैं। मैंने भी इन दो सालों में अनेकों फोटो लिए हैं। विशेषज्ञ कारीगरों को बुलाकर लकड़ी के दरवाज़ों को भी मजबूती प्रदान की। दोनों ओर व बाहर की दीवार पर भी चित्रकारी की है। सुबह का सूरज सीधा यहां रोशिनी करता है और चित्र चमक उठते है। लाडपुरा दरवाजे पर चित्रकारी का कार्य समाप्ति की ओर है जबकि सूरजपोल का कार्य पूर्ण हो चुका है। यदि प्रत्येक दरवाज़े पर इनके इतिहास की जानकारियां भी दर्ज हों तो पर्यटकों को सहूलियत होगी और इनके महत्व का पता चलेगा।

















