कब किसी का ये जहाँ हो के रहा है…

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चाँद ‘शैरी’

chand sheri
चांद शेरी

उनकी यादों का जो पलकों पे बसेरा होगा
जगमगाते हुए दीपों में सवेरा होगा
प्यार की बीन पे नाच उठे जो नागिन की तरह
मीत उस गाँव की गोरी का सपेरा होगा
ऐ ग़ज़ल जिसने हसीं नक्श उभारे तेरे
माहिरे-फन वो अजन्ता का चितेरा होगा
काफिले को था यकीं जिस की निगहेबानी पर
क्या ख़बर थी वो निगहेवां ही लुटेरा होगा
था वहाँ नामो-निशां भी न शजर का कोई
हमने सोचा था वहाँ साया घनेरा होगा
जिनके जेहनों में न दर है न दरीचा कोई
उनके आगे तो अंधेरा ही अंधेरा होगा
कब किसी का ये जहाँ हो के रहा है ‘शेरी’
फिर तुझे कैसे यकीं है कि ये तेरा होगा

चाँद ‘शैरी’ (कोटा)

098290-98530

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