बाहर निकलना हो तो चेहरा बदल के निकलो। अपनी शराफ़तों को तुम अपने घर में रक्खो।।

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ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

shakoor anwar
शकूर अनवर

है कितनी दूर मंज़िल बस ये नज़र में रक्खो।
इन रास्तों की बातें बाबे-दिगर* में रक्खो।।
*
बाहर निकलना हो तो चेहरा बदल के निकलो।
अपनी शराफ़तों को तुम अपने घर में रक्खो।।
*
ये मौत के फ़रिश्ते आ जायेंगे वहीं पर।
तुम क़ैद ख़ुद को चाहे दीवारो- दर में रक्खो।।
*
ऐ बाग़ के परिंदो सय्याद* क्या करेगा।
कुछ हौसला तो अपने तुम बालो-पर* में रक्खो।।
*
इंसानियत का “अनवर” अब है यही तक़ाज़ा।
सारे जहाँ के ग़म को अपने जिगर में रक्खो।।
*

बाबे दिगर*अन्य अध्याय
सय्याद*शिकारी चिड़ीमार
बालो पर*परिंदे के बाल और पर

शकूर अनवर
9460851271

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