
ग़ज़ल
-चाँद ‘शैरी’-
सय्यादों से आज़ाद फ़जा मांग रहे हो
गुलचीनों से गुलशन का भला मांग रहे हो
धनवानों से उम्मीद है क्या रहमो करम की
नादान हो क्यूं इन से दया मांग रहे हो
रहजन से भी बदतर है बहुत आज का रहबर
इन अन्धे से मंज़िल का पता मांग रहे हो
जो खुद की ख़तावार है इंसाफ के मुजरिम
क्यूं अपने लिए उनसे सज़ा मांग रहे हो
घर खन्ज़रों में अपना बनाया है तो शेरी
क्यूं चैन से जीने की दुआ मांग रहे हो
चाँद ‘शैरी’ (कोटा)
098290-98530
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