
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

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भला और क्या करेंगे ये मुहब्बतों के मारे।
कभी जगनुओं से खेले कभी गिन लिये सितारे।।
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हाँ तेरे ग़मों को पाकर मेरी उम्र कट गई है।
तेरे ग़म अज़ीज़ मुझको मेरी जान से भी प्यारे।।
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तुझे हर ख़ुशी मयस्सर*, तेरे साथ ऐशो-इशरत*।
मेरे पास ग़म की दौलत, मेरे ऑंसुओं के धारे।।
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मेरी आरज़ू* यही है, मैं उडूॅं क़फ़स को तोडूॅं।
कोई कब तलक रहेगा यहाँ ज़ुल्म के सहारे।।
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यहाँ इस तरफ़ मुहब्बत,वहाँ उस तरफ़ ज़माना।
मैं फॅंसा हुआ हूँ “अनवर”कोई मुझको पार उतारे।।
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शब्दार्थ:-
ममयस्सर*प्राप्त होना,मिलना
ऐशो-इशरत*सुख,आराम
आरज़ू*इच्छा,तमन्ना
क़फ़स*पिंजरा
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शकूर अनवर
9460851271