
-डॉ अनिता वर्मा-

(सहआचार्य हिन्दी, राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
सर्दियों की दस्तक के साथ मौसम गुलाबी होने लगा है। सर्दियों की हल्की- हल्की सिहरन मन को शीतलता प्रदान करते हुए राहत दे रही है। प्रकृति अपने सम्पूर्ण स्वरूप में परिवर्तित दिखाई दे रही है। छोटे छोटे पौधों में रौनक आ गई है मानों यौवन पूर्णता के साथ उनमें आ समाया है। रंग बिरंगे सतरंगी फूलों की दुनियाँ प्रकृति का जैसे शृंगार करने को आतुर हैं। फूलों की बात हो और तितलियों की बात ना हो ऐसा कैसे संभव है। आज तितलियाँ आसानी से कहाँ दिखाई देती है और आज की पीढ़ी तो तितलियों के अद्भुत संसार से बिलकुल अनभिज्ञ सी है। कमरों में बन्द उनका कल्पना संसार और मोबाईल में उनका सारा जीवन सिमट सा गया है। यह कैसी विडंबना है। प्रकृति में विचरण करने, उससे बात करने की अब फुर्सत किसे है। आज मुझे अपने बचपन के वे दिन याद आ गए जब आधी छुट्टी की घंटी बजते ही हम सब कक्षाओं से बाहर भागते हुए अपनी अपनी प्रिय जगह पर आ बैठते थे और अपने पसंदीदा खेल में व्यस्त हो जाते थे। वहाँ आसपास मैदान में लगे जंगली झाडू के बीच चटख आभा बिखेरते सुन्दर छोटे-छोटे फूल और फूलों पर मंडराती सुन्दर बहुरंगी तितलियाँ हम सब बच्चों का प्रिय खेल था कुछ खाने के बाद तितलियाँ पकड़ना। अज्ञान वश तितलियों के पीछे भागते हुए हम सब बच्चे उन्हें पकड़ने का निरर्थक प्रयास करते थे।
तितलियों के उस सौंदर्य की छाप अंकित
फूलों का रसपान करती तितलियाँ, मनमोहक तितलियाँ हमें बहुत आकर्षित करती थी। ओहो! कितना अद्भुत सौंदर्य समाया हुआ है इन तितलियों में मैं अब महसूस करती हूँ। प्रकृति ने उनकी संरचना में मानों पूरी जी जान लगा दी हो। उनके सौन्दर्य में अपना कौशल और चित्रकारी के सारी कलात्मकता उडेल दी हो। चटख रंगो में घोलकर प्रकृति ने अपने ब्रश से उन्हें फुर्सत के साथ सजाया संवारा है। मेरे मन मस्तिष्क पर अभी भी तितलियों के उस सौंदर्य की छाप अंकित है। भांति भांती की विभिन्न रूपों और रंगों से सजी इतनी सुन्दर बस देखते जाओ। नारंगी रंग और उस पर काली गोल बिन्दियां साथ में नारंगी रंग पर काली पतली आउट लाईन के पंख वाली तितली, कत्थई रंग पर सफेद हल्की लकीरें,मोर की गर्दन के मखमली नीले रंग और उस पर छोटे छोटे भूरे रंग से सजे पंख,सफेद रंग और उस पर काले शेड्स, पीले रंग जिसे हम बासन्ती कह सकते हैं। यह तितली सहज सुलभ थी जो उन झाड़ियों पर खिले हुए फूलों पर मंडराती दिख जाती थी। विविध रंग विविध शेड्स से सजी छोटी बड़ी तितलियों को देखने का अवसर मुझे मिला है। बैंगनी रंग और उसमें हल्की भूरी लकीरों से सजी तितलियाँ यहाँ से वहाँ उड़ती तितलियाँ जिनके बीच हमारा बचपन बीता। एक रंग के अनेक प्रकार की तितलियाँ हमें बहुत आकर्षित करती थी हम उनके पीछे भागते हुए आनन्द की अनुभूति करते थे। ऐसा लगता था कि किसी स्वप्न लोक में आ गए हो।
इस सौंदर्य को महसूस करने का समय नहीं
हम सब बच्चे गुनगुनी धूप के साथ स्वर्णिम आभा बिखेरते सूर्य देवता की उन सुनहरी किरणों में धूप सेंकते और स्वछंदता से एक फूल से दूसरे फूल पर मंडराती हुई तितलियों को निहारते नहीं अघाते थे। हम सब बच्चे एक दूसरे को अंगुली के इशारे से मौन रहने का संकेत देते जैसे ही तितली फूल पर बैठती उधर दौड़ पड़ते। कैसा मोहक संसार था तितलियों का। बिलकुल जादुई वैसे रंग तो अब दिखने दुर्लभ हो गये हैं। अब सब कुछ परिवर्तित हो गया है। तेजी से वायु प्रदूषण बढ़ गया है ,आधुनिकता से सजे संसार में कहाँ से झाड़ियों के बीच विचरता बचपन दिखाई देगा। किसी के पास समय नहीं जो इस सौंदर्य को महसूस कर सके सब लुप्तप्राय हो गया है। प्रकृति का अनुपम उपहार तितलियाँ अब दिखाई नहीं दे रही है यह चिंता का विषय है।
तितली विशेषज्ञों ने तितली संरक्षण के लिये राष्ट्रीय तितली की खोज का अभियान भी चला रखा है। विभिन्न प्रकार की तितलियों की प्रजातियाँ खोजी जा रही हैं। तितलियों के संरक्षण के लिए विशेषज्ञों का संघ इस हेतु प्रयासरत है। इस अद्भुत सौन्दर्य से समृद्ध तितलियाँ विविध रंगों के साथ और पंखों पर प्रकृति प्रदत्त सुन्दर रेखांकन और उनके मध्य भरे हुए रंग और उन पर बनी आकृतियाँ मन को मोह लेती हैं। आज तितलियों के संरक्षण की अति आवश्यक है। इसके लिए प्रकृति से जुड़ाव जरुरी है। कंकरीट के जंगलों के स्थान पर कच्ची जमीन और उसके आसपास फूलों का खिलना जरुरी है जिससे तितलियाँ स्वछन्द होकर विचरण कर सकं,े फूलों का रसपान कर सके। आज की पीढ़ी तो तितली के इस सौंदर्य से बिलकुल अनभिज्ञ है हाँ ,,,,उन्हें यह गीत जरूर याद आ जाता है—-तितली उड़ी उड़ के चली फूल ने कहा आजा मेरे पास तितली कहे, मैं चली आकाश !! आगे इसी क्रम में एक गीत की पंक्तियाँ याद आ रही है जिसमें तितलियाँ रंगों से सजी हुई हैं। मानव जीवन में ये रंग उत्साह और उमंग का संचार करते हैं जीवन को गति प्रदान करते हैं, ये रंग खुशी उमंग उत्साह सकारात्मक ऊर्जा का ही प्रतीक कहे जा सकते हैं। गीत के बोल हैं– मैं कोई ऐसा गीत गाऊँ,,,,,मैं तितलियों के पीछे भागूं मैं जुगनूओं के पीछे जाऊँ,,,,,ये रंग है वो रोशनी तुम्हारे पास दोनों लाऊँ! सचमुच जीवन में रंग और रोशनी दोनों जरुरी है। कभी खिले फूलों की दुनियाँ में डूब जाये जहां रंग भी है सुंदरता भी इन्हें देखकर मन अवश्य प्रसन्न होगा। आसपास लगे बगीचे में भ्रमण करते हुए उनसे संवाद करें यहाँ से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है जैसे किसी को विनीत भाव से सुनना पेड़ क्या करते हैं, सुनते ही रहते हैं। जो अपने पास होता है निःस्वार्थ भाव से मुक्त हस्त से लुटाते ही रहते हैं और यहीं हमें तितलियों की रंग बिरंगी दुनियां को पास से देखने व जानने का अवसर मिल जाये तो क्या कहना अतः प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लें कुछ क्षण प्रकृति की गोद में बिताये, प्राकृतिक दृश्यों को आत्मसात करें। प्रकृति के बीच अनेक ध्वनियां मधुर संगीत सी गूंजती रहती हैं। उन्हें महसूस करें आनन्द की अनुभूति के साथ प्रकृति में बिखरा सौन्दर्य जो कहीं सुन्दर तितलियों में समाया है तो कहीं फूलों में उसको निहारें। कुछ समय प्रकृति के साथ अवश्य व्यतीत करें।
डॉ अनिता वर्मा
संस्कृति विकास कॉलोनी 3
कोटा राजस्थान
पिन 324002

















