क्या राहुल गांधी अपने ट्रैक से उतर रहे हैं या उन्हें नियोजित तरीके से उतारा जा रहा है!

whatsapp image 2025 04 05 at 09.31.42

-देवेंद्र यादव-

devendra yadav 1
देवेन्द्र यादव

कांग्रेस हाई कमान को अक्सर देखा गया है कि वह चलते-चलते अपने ट्रैक से उतर जाता है या भटक जाता है। जिसका खामियाजा पार्टी को अंत में भुगतना पड़ता है। कांग्रेस कमजोर क्यों हो रही है इसकी असल वजह भी यही है। कांग्रेस हाई कमान सही रास्ते पर चलते-चलते अचानक से क्यों भटकता है क्या हाई कमान को सही रास्ते से उतारा जाता है या भड़काया जाता है।
कांग्रेस को मजबूत करने के लिए दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी देश के तमाम कांग्रेस जिला अध्यक्षों की बैठक कर रहे थे। 4 अप्रैल तक चली अध्यक्षों की बैठक में देश भर के सभी जिला अध्यक्षों ने भाग लिया और कांग्रेस को कैसे मजबूत करें इस पर मंथन किया। लेकिन जिला अध्यक्षों की बैठक के अंतिम दिन कांग्रेस हाई कमान ने एक ऐसा फैसला लिया जिससे लगता है कि कांग्रेस हाई कमान या तो रास्ते से उतर रहा है या फिर भटक रहा है। वह कौन लोग हैं जो सही रास्ते पर चलने वाले हाई कमान को अचानक से भटका रहे हैं और रास्ते से उतार रहे हैं।
राहुल गांधी ने कई बार अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कांग्रेस इसलिए कमजोर हो रही है क्योंकि पार्टी के भीतर भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की विचारधारा रखने वाले लोगों का प्रवेश हो गया है। ऐसे लोगों को चुन चुन कर कांग्रेस से बाहर करना होगा। सवाल यह है कि गैर कांग्रेसी लोगों ने कांग्रेस में प्रवेश कैसे किया। कांग्रेस हाई कमान को इसकी याद तब आई जब कांग्रेस पूरी तरह से कमजोर हो गई और विभिन्न राज्यों में कांग्रेस खत्म हो गई। लेकिन याद तो आई मगर कांग्रेस हाई कमान को यह पता नहीं चला और चल पा रहा है कि गैर कांग्रेसी लोगों का कांग्रेस में प्रवेश कैसे हुआ।
देश भर के कांग्रेस अध्यक्षों की बैठक के बाद 4 अप्रैल को कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय मनमोहन सिंह को याद करते हुए प्रोफेशनल लोगों को कांग्रेस में प्रवेश देने की बात हुई। यह योजना डॉक्टर मनमोहन सिंह के नाम पर लॉन्च की गई, और दलील दी गई मोतीलाल नेहरू, राजीव गांधी, डॉ मनमोहन सिंह जैसे बड़े नेताओं की, यदि सत्ता और संगठन की बात करें तो, यह नेता सत्ता में तो मजबूत रहे लेकिन संगठन कमजोर रहा।

whatsapp image 2025 04 05 at 09.31.42 (1)
यह नेता सत्ता में रहते हुए कांग्रेस को सत्ता में लेकर नहीं आ पाए। चाहे वह राजीव गांधी हो या फिर मनमोहन सिंह !
मनमोहन सिंह तो स्वयं लोकसभा का चुनाव नहीं जीत पाए। वह हमेशा राज्यसभा से सांसद बने। एक समय ऐसा ही प्रयोग कमोबेश राजीव गांधी ने किया था। उन्होंने अपने सहपाठियों को सत्ता और संगठन में जगह दी। नतीजा यह हुआ कि इंदिरा जी की मौत के बाद राजीव गांधी को मिली ऐतिहासिक जीत को राजीव गांधी 1990 के लोकसभा चुनाव में बरकरार नहीं रख पाए और कांग्रेस चुनाव हार गई।
1977 में कांग्रेस जब सत्ता से बाहर हुई थी उसके ढाई साल बाद श्रीमती इंदिरा गांधी को 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं ने ईमानदारी और वफादारी के साथ मेहनत कर केंद्र की सत्ता में पहुंचाया था। तब श्रीमती इंदिरा गांधी ने केंद्र की सत्ता में वापस आने के लिए प्रोफेशनल लोगों का सहारा नहीं लिया था बल्कि सहारा लिया था अपने जांबाज कर्मठ कार्य कर्ताओं का। राहुल गांधी भी कुछ-कुछ यही बात कहते हैं और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बब्बर शेर बताते हैं। मगर क्या राहुल गांधी को अपने बब्बर शेरों पर भरोसा नहीं है। क्यों अब राहुल गांधी कांग्रेस के भीतर प्रोफेशनल लोगों का प्रवेश करना चाहते हैं। कांग्रेस का कार्यकर्ता 2014 के बाद से कांग्रेस की दयनीय स्थिति पर दबी जुबान बोलता आया है कि कांग्रेस इसलिए कमजोर है क्योंकि पार्टी को कार्यकर्ता नहीं बल्कि प्रोफेशनल लोग चला रहे हैं। राहुल गांधी के इर्द-गिर्द प्रोफेशनल लोगों की एक बड़ी फौज है जो उन्हें भ्रमित करती है। क्या कार्यकर्ताओं की यह बात 4 अप्रैल को सिद्ध हो गई जब हाई कमान ने निर्णय लिया कि कांग्रेस के भीतर प्रोफेशनल लोगों का प्रवेश कराया जाएगा।
राहुल गांधी से लेकर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सलाहकारों पर नजर डालें तो ज्यादातर दोनों नेताओं को सलाह देने वाले लोग प्रोफेशनल ही हैं। सोशल मीडिया या मीडिया विभाग में भी ऐसे लोगों की ही भरमार है।
1980 में इंदिरा गांधी और 2004 में सोनिया गांधी ने केंद्र की सत्ता कांग्रेस कार्यकर्ताओं की ईमानदार ताकत के कारण हासिल की थी। तब दोनों के साथ प्रोफेशनल नेता नहीं थे। फिर अब ऐसा क्या हो गया कि कांग्रेस हाई कमान को प्रोफेशनल नेताओं की जरूरत पड़ रही है।
सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी अपने ट्रैक से उतर रहे हैं या उन्हें नियोजित तरीके से उतारा जा रहा है। कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन से पहले एक बार फिर से राहुल गांधी को इस पर चिंतन और मंथन करना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments