
-विष्णु देव मंडल-

(बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार)
पटना। बिहार में जब महागठबंधन की सरकार बनी थी तो महागठबंधन के सर्वमान्य नेता नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव हर मंच, हर सभा में केंद्र सरकार के खिलाफ बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर जनता के बीच जा रहे थे। कह रहे थे दो करोड़ बनाम दस लाख बिहारियों को नौकरी देगी महागठबंधन की सरकार।
लेकिन महज 5 महीनों में महागठबंधन की सरकार रोजगार या अन्य समस्याओं पर मंथन करने के बजाए अलग-अलग मुद्दे पर आमने-सामने हैं। दोनों दलों के नेताओं और मंत्रियों महागठबंधन में ही सर फुटौबल कर रहे हैं!।
महागठबंधन में अनुशासन नाम की कोई चीज नहीं है जहां राष्ट्रीय जनता दल के नेता और मंत्री सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ हमला बोलते रहे हैं वहीं जदयू के नेता भी राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं के बयान पर ट्विटर वार करते दिखाई दे रहे हैं।
बहरहाल शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव का रामचरितमानस पर बयान पर दोनों दलों के बीच गांठ फंसा हुआ है जहां नीतीश कुमार तेजस्वी यादव से चंद्रशेखर यादव का विभाग बदलने का दबाव बना रहे हैं वही तेजस्वी यादव चंद्रशेखर यादव पर दबाव बनाने में असमर्थ हैं। उन्हें इस बात का डर है कि यदि अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं पर लगातार दबाव बनाएंगे तो स्थित विस्फोटक भी हो सकता है। जब मीडिया ने तेजस्वी यादव से सवाल किया कि रामचरितमानस पर चंद्रशेखर यादव का बयान को आप किस तरह से देख रहे हैं तो उनका जवाब था संविधान ने हमें बोलने की आजादी दी है इसलिए हर किसी को अपना मत रखने का अधिकार है इसलिए इस बयान पर ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन जदयू नेता और मुख्यमंत्री रामचरितमानस वाला बयान से बेहद चिंतित हैं और तेजस्वी यादव पर दबाव बना रहे हैं कि वह चंद्रशेखर का या तो विभाग बदले या फिर पद से हटाएं इसी कडी में नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल विस्तार की भी बात कही थी। लेकिन तेजस्वी यादव के साथ समस्या यह है कि वह पिता की सहमति के बिना चंद्रशेखर यादव समेत अन्य बयान देने वालों पर कार्रवाई भी नहीं कर सकते।
बहरहाल तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के दबाव में शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव के बारे में यह कहना शुरू कर दिया है कि शिक्षा मंत्री का परफॉरमेंस ठीक नहीं है, उनहोंने यहाँ तक कह दिया है कि जब से चंद्रशेखर यादव शिक्षा मंत्री बने हैं तब से शिक्षका हड़ताल और धरना प्रदर्शन अधिक कर रहे हैं, लेकिन तेजस्वी यादव के साथ परेशानी यह है कि वह इन नेताओं पर कार्रवाई तब तक नहीं कर सकते जब तक पिताजी से सहमति न ले लें। कारण अधिकांश बयान देने वाले नेता उनके पिता जी के मंडली के हैं जो तेजस्वी यादव से बहुत सीनियर भी हैं, और पुराने नेताओं और कार्यकर्ता को लालू शैली में राजनीति करने की आदत है जबकि तेजस्वी यादव अपनी साफ छवि और सुव्यवस्थित तरीके से राजनीति करना चाहते हैं। यहां उल्लेखनीय है कि एक तरफ चंद्रशेखर यादव के रामचरितमानस वाले बयान से राजद और जनता दल यूनाइटेड के बीच झगड़े चल रहे हैं दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल के एक और नेता सुरेंद्र यादव ने भाजपा के विरोध में सेना पर बयान दे दिया है, इसलिए भी जदयू और राजद के बीच आपसी खींचतान बढ़ गई है। सुरेन्द्र यादव का यह बयान आया है कि भाजपा अगले चुनाव जीतने के लिए किसी देश पर हमला करवा सकती हैं के बाद महागठबंधन दलों के बीच फिर से तनाव बढ गया है, राजद नेता सुरेन्द्र यादव के इस बयान से जदयू सहमत नहीं है। ऐसे में दोनों दलों के बीच रिश्ते दिनों दिन बिगड़ते जा रहे हैं।
लालू यादव का इंतजार तब तक नीतीश कुमार
राजनीतिक जानकारों के अनुसार बिहार में राजनीति कभी भी करवट ले सकती है। जहां जनता दल यूनाइटेड भाजपा से फिर नजदीकियां बढ़ा रही है वही इस बात का कयास लगाया जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव को देश वापसी के बाद राष्ट्रीय जनता दल तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए नीतीश कुमार का चक्रव्यूह भी तोड़ सकता है। वैसे नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में हमेशा से आगे रहे हैं, उनका इतिहास बताता है कि वह सत्ता में बने रहने के लिए कभी भी किसी से गठबंधन बनाने से परहेज नहीं करते। यही वजह है कि पिछले 18 सालों से कभी भाजपा के साथ तो कभी राष्ट्रीय जनता दल के साथ जाकर सरकार बनाई हैं और अपनी ही शैली में राजनीति करते रहे हैं। लालू प्रसाद यादव भी नीतीश कुमार को बेहतर जानते हैं कि नीतीश कुमार को समझना आसान नहीं है। नीतीश कुमार राजनीति की दुनिया के ऐसी पहेली है जिसे समझना बहुत ही कठिन होता है। बिहार की राजनीति में फिर से बदलाव का आसार नजर आ रहा है भाजपा भी इस बार नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में देखना नहीं चाहती।
यहां उल्लेखनीय है कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच महागठबंधन बनाने से पहले यह तय हुआ था कि नीतीश कुमार पीएम मैटेरियल होंगे वही बिहार की सत्ता तेजस्वी यादव संभालेंगे। लेकिन नीतीश कुमार द्वारा समाधान यात्रा शुरू करने के बाद राष्ट्रीय जनता दल को नेतृत्व कोे यह समझ में आने लगा है है कि नीतीश कुमार 2025 से पहले राजद को सत्ता हाथ में सौंपने के पक्ष में नहीं है। यही वजह है कि राष्ट्रीय जनता दल के नेता और कार्यकर्ता नीतीश कुमार के खिलाफ जहर उगल रहे हैं ताकि फ्रस्ट्रेशन में आकर नीतीश कुमार गद्दी छोड़ दें। कुल मिलाकर बिहार की राजनीति में बयान बाजी चरम पर है। बिहार आज भी सर्वाधिक पिछड़े राज्य में शुमार किया जाता है। जहां रोजी रोटी कानून व्यवस्था बुनियादी सुविधाएं जैसी कई समस्याएं हैं लेकिन राजनीति आज भी बयान वीरों पर टिकी हुई है। जहां राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड ने बिहार को गरीबी और बेरोजगारी को मुक्त करने के लिए गठबंधन बनाने की बात कही थी वह आज शून्य हो चुका है। दोनों दलों को सिर्फ सत्ता की सियासत करनी है। आमजन ठगा हुआ महसूस कर रहा है।

















