
-टिपरा मोथा बिगाड़ सकती है सियासी गणित
-द ओपिनियन-
त्रिपुरा में 16 फरवरी को होने वाले मतदान के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने का काम शनिवार से शुरू हो गया। इसके साथ ही चुंनावी व्यूह रचना की तैयारियां भी चल रही है। भाजपा ने पिछले चुनाव में चमात्कारिक जीत दर्जकर सभी को चौंका दिया था। उसने माकपा के 25 साल से चला आ रहे शासन का अंत कर दिया था, लेकिन इस बार उसकी राह आसान नहीं है। उसके दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस व माकपा में अब गठबंधन हो गया है। भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए ये दोनों दल साथ आ गए हैं। इसके साथ आदिवासियों की हिमायती टिपरा मोथा की चुनौती भी भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। 2019 में अस्तित्व में आई टिपरा मोथा ने राज्य विधानसभा चुनाव की 40 से 45 सीटों पर चुनाव लड़ने घोषणा की है। यह भाजपा का चुनावी गणित गड़बड़ा सकती है। अभी आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा व उसकी सहयोगी पार्टी आईपीएफटी का कब्जा है। टिपरा मोथा का गठन त्रिपुरा की पूर्व शाही परिवार के प्रद्योत माणिक्य देव बर्मन ने किया था। टिपरा मोथा ने 2021 में हुए त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वशासी जिला परिषद के चुनाव में 28 में से 18 सीटें जीतकर अपनी राजनीतिक ताकत दिखा दी थी। टिपरा मोठा के गठन के बाद उसकी ग्रेटर टिपरालैंड की मांग ने आदिवासियों के बीच पार्टी को लोकप्रिय बना दिया। इसलिए उसकी उपेक्षा न भाजपा कर सकती है और न कांग्रेस व माकपा का गठबंधन इसकी अनदेखी कर सकता है। अब यदि टोपरा मोथा अपने बूते पर चुनाव मैदान में उतरी तो वह किसको नुकसान पहुंचाएगी इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। कांग्रेस व माकपा का गठबंधन चाहता है कि टिपरा मोथा उसके साथ आ जाए। हालांकि भाजपा का एक अन्य आदिवासी संगठन आईपीएफटी के साथ गठबंधन है और भाजपा की पिछले चुनाव में जीत में इसकी खास भूमिका रही है। लेकिन टिपरा मोथा के चुनाव मैदान में आने से आदिवासी मतों के विभाजन का खतरा है।
यह है सामाजिक गणित
त्रिपुरा में करीब 32 प्रतिशत आबादी जनजातियों की है और राज्य विधानसभा की 60 में से 20 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। बाकी बची 40 सीटों में से 10-12 सीटों पर आदिवासी अच्छी खासा प्रभाव रखते हैं।
तृणमूल भी है मैदान में
इनके अलावा इस बार तृणमूल कांग्रेस भी चुनाव मैदान में होगी। तृणमूल पूर्वोत्तर के राज्यों में अपना प्रभाव बढ़ाने में जुटी है। वह कांग्रेस के पूर्व नेताओं के बूते अपने को मजबूत करने में लगी है। तृणमूल का किसी स्थानीय दल से गठबंधन की संभावना नहीं है। ऐसे में यदि पार्टी चुनाव मैदान में आती है तो इससे वोटों के बंटवारे का रास्ता खुलेगा। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी त्रिपुरा में राजनीतिक ताकत बनने के लिए पूरा जोर लगा रही हैं । हालांकि कांग्रेस नेता सुदीप राॅय बर्मन दावा करते हैं टीएमसी का त्रिपुरा में कोई प्रभाव नहीं है वह चंद वोट बटोरकर भाजपा को ही फायदा पहुंचाएगी । कांग्रेस को सुदीप राॅय बर्मन के पार्टी में वापस लौट आने से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। बर्मन 2016 में कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में शामिल हो गए थे। बाद में वह 2017 में भाजपा में शामिल हो गए। 2019 में उन्हें बिप्लव देव सरकार के साथ मतभेद के चलते उनको सरकार से हटा दिया गया था। उसके बाद वे 2022 में कांग्रेस में लौट गए थे।