
-प्रतिभा बिष्ट अधिकारी-

(लेखिका की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं)
इटली प्रसिद्ध चित्रकार ‘ लियोनार्दो ‘ की जन्मस्थली है। एक बड़ी ऊँची प्रतिमा जो ‘ लियोनार्दो ‘ की है उसे देखते हुए हमने मिलान -मार्केट में कदम रखे। लियोनार्दो दा विंसी अपनी विश्व -प्रसिद्ध कृति ‘ मोनालिसा ‘ ( La Gioconda ) के लिए चर्चित हैं । कहते हैं ‘ मोनालिसा ‘ की कई प्रतिलिपियाँ हैं पर असली कृति फ्रांस के लूव्र म्यूजियम में है । फ्रांस में मोना से मिलने के बाद ही बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्तित्व ‘ लियोनार्दो ‘ से इटली में मिलना हुआ । ( लियोनार्दो अभियंता, शिल्पकार, स्थापत्य कला में भी माहिर थे)। यहाँ एशियन पर्यटकों की बहुत भीड़ थी।
अपने प्रिय चित्रकारों में से एक लियोनार्दो के साथ हमने भी स्वयं को भी एक यादगार के रूप में कैमरे में कैद करवाया ।
इटली का ‘ मिलान’ शहर जिसे पेरिस के डिजायनर मिलकर फैशन -हब बनाते हैं ; अपने लेटस्ट फैशन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की प्रसिद्ध ‘दुआमो -शॉप्स ‘ ; ‘ दुआमो चर्च ‘ के पास हैं । यहाँ प्रसिद्ध डिजायनर्स के शोरूम है ; versace , रोक्का घड़ी , परादा आदि शोरुम मेरी आँखों के आगे से गुजरे, बस; विंडो शॉपिंग करते हुए इनको निहार भर लिया।
आह ! ये वही ब्रांड्स हैं जिनके बारे में हाई प्रोफाइल फैशन मैगजींस और अख़बारों में पढ़ते थे, आज रु -ब -रु देखने को मिले।

इटली ‘ रेनेसाँ’ अर्थात पुनर्जागरण \ पुनर्जन्म की सांस्कृतिक क्रान्ति के लिए भी प्रसिद्ध है , 500 ईस्वी के आस-पास यूरोप भयंकर गृह- युद्धों की उथल-पुथल से गुजरा था, बाद में यहाँ शांति स्थापित हुई।
(‘ रेने ‘ फ्रेंच नाम है , पूर्व मिस यूनिवर्स सुस्मिता सेन की बेटी के नाम से इसे रिलेट कर सकते हैं )
दुआमो मार्केट का फर्श, नीले, भूरे और नेत्रों को भाने वाले रंगों से आच्छादित है । इस चमचमाते फर्श की छटा दर्शनीय है। ऊँची छत का डिजाइन भी देखते बनता है ।
पेरिस को देखने के बाद इटली को देखना कम भाया, कहाँ धनी पेरिस और कहाँ गरीब इटली !!
इटली के मिलान के दुआमो shops और चर्च ख़ास आकर्षण हैं ।
पेरिस का भवन निर्माण शिल्प जगप्रसिद्ध है । इटली के मिलान का यह मार्केट यद्यपि बहुत सुन्दर है पर फ्रांस के मुकाबले कम खूबसूरत लगा । यहाँ इटैलियन मार्बल का फर्श अपने ताजमहल की याद दिला रहा था। जल – निकासी के लिए लगी पीतल की चौकोर जालियों में सिगरेट के टोंटे पड़े दिखे, यह अवश्य पर्यटकों की लापरवाही होगी।

बाह्य होटल संस्कृति के चलते जहाँ आप फुटपाथ पर भोज्य पदार्थो का आनंद ले सकते हैं ; चलन में दिखी । हमने कोई अच्छी सी स्वाद की ( नाम स्मरण नहीं ) आइसक्रीम खायी थी l
यहाँ प्रेमी जोड़ों को दीन -दुनिया से बेखबर खुद में गुम ; पार्क , भवनों और गिरजाघर की सीढ़ियों में बैठे देखना आम नज़ारा था ।
यद्यपि मुझे पेरिस और इटली में ऐसा कोई फैशन नहीं दिखा । फिर भी ये माना जाय कि फैशन उद्योगपतियों और फिल्म-जगत की हस्तियों के लिए ही हैं, जो फैशन -परेड में कैट- वॉक करते अजब -गजब स्टायल दिखते हैं वह मैंने जन सामान्य को धारण किये नहीं देखा । आम व्यक्ति वहाँ साधारण ब्लू डेनिम और डार्क शेड्स, पेस्टल रंगों की शर्ट्स \ कोट में दिखा ।

महिलायें भी नी -लेंथ की स्कर्ट्स में थीं, हाँ ; हाई हील सब महिलाओं और कन्याओं की पसंद में शामिल प्रतीत हुए ।
तो !! मित्रो ! अधिक फैशनेबल बनने की आवश्यकता नहीं है, जो आपको कम्फर्टेबल लगता हो उसे ग्राह्य करें! वार्डरोब खोलकर चिंता में न रहें कि हाय !! अब मैं क्या पहनूँ (ये जुमला युवाओं का है) |
एक बात और ….इटली में मुझे शॉप के बाहर छोटी दुकान जिसे यहाँ का खोमचा कहेंगे, वहां टी-शर्ट्स थीं, वही टी-शर्ट्स एयरपोर्ट शॉप पर भी थीं ; दुगुने दाम में, तो बाहर से खरीदना बेहतर होता न!
यहाँ किराने की शॉप भी थी; एकदम स्टायलिश -अनुशासित और नफ़ीस ।
इटली शाम के समय मौसम बिलकुल जर्मनी -पेरिस की भाँति सुहावना था,रात को बारिश होने लगी थी ।
इटली का आधा -अधूरा भ्रमण कर हम अपने प्यारे देश भारत लौट आये।
(यह संस्मरण लेखिका की यूरोप यात्रा वर्णन ‘हिमालय से एल्प्स तक’ पुस्तक में है)

















