कभी अपनी मौज में लहराते हुए बहती थी चंबल, अब बंधन में जकड़ दिया

एक समय यह नदी कहीं सूखी दिखती थी तो इसमें कहीं गहरा पानी होता था। राणा प्रताप सागर बांध बनने से पूर्व पिछले भाग में छोटी-बड़ी पहाड़िया थीं। इस इलाके के आसपास खेती होती थी। यहां जंगल था जहां से ग्रामीण पशु चराने के अलावा लकड़ियां ईंधन के तौर पर लाते थे। ये समय 1950 के आसपास का था। राणा प्रताप सागर डेम बन जाने के बाद बहुत बडा इलाका डूब में आ गया। इसमें गांव, जंगल और छोटी पहाडियां तक शामिल हैं।

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जवाहर सागर सेंचुरी का विहंगम दृश्य। ए एच जैदी

-ए एच जैदी-

ah zaidi
एएच जैदी

(नेचर प्रमोटर और ख्यातनाम फोटोग्राफर )
कोटा। कोचिंग सिटी कोटा के लिए जीवन दायनी चम्बल नदी कभी अपनी मौज मस्ती में लहराते हुए अविरल बहती थी। औद्योगिक विकास और आधुनिकी करण के लिए बिजली और खेतों की सिंचाई की जरुरतों को देखते हुए चंबल नदी पर एक के बाद एक बांध बनाते गए। इससे चंबल के प्राकृतिक बहाव पर रोक लग गई। इसका नैसर्गिक सौंदर्य प्रभावित हुआ। अविरल बहने वाला पानी एक तरह से बंध गया। एक समय यह नदी कहीं सूखी दिखती थी तो इसमें कहीं गहरा पानी होता था। राणा प्रताप सागर बांध बनने से पूर्व पिछले भाग में छोटी-बड़ी पहाड़िया थीं। इस इलाके के आसपास खेती होती थी। यहां जंगल था जहां से ग्रामीण पशु चराने के अलावा लकड़ियां ईंधन के तौर पर लाते थे। ये समय 1950 के आसपास का था। राणा प्रताप सागर डेम बन जाने के बाद बहुत बडा इलाका डूब में आ गया। इसमें गांव, जंगल और छोटी पहाडियां तक शामिल हैं।

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चंबल में मछलियां पकडने के लिए बोट। फोटो एएच जैदी

मैं 30 वर्ष पूर्व पहली बार सिंघडिया गांव के क्षेत्र में आया था। उसके बाद यहां की प्राकृतिक और नैसर्गिक सौंदर्य को अपने कैमरे में कैद करने के लिए यहां आना निरंतर जारी रहा। चंबल में पानी की गहराई कम हो सकती है लेकिन फैलाव बहुत है। बांध बनने से छोटी-छोटी पहाड़िया सभी इसकी डूब में आ गई। लेकिन ऊंचाई वाले टापुओं को अब भी देखा जा सकता है। बांध की वजह से अनेकों गांव डूब गए। बांध बनाने से पूर्व सरकार ने परम्परागत गांव खाली करवा लिए। यहां के निवासियों को अन्यत्र बसा दिया। बांध की वजह से ग्रामीणों का पुनर्वास किया गया तो उस समय ग्रामीणों को अपनी चिंता थी। कई ग्रामीण अपने मवेशियों को वहीं छोड़ आये। वो मवेशी भी ऊपर वाले भाग में आ गये ।
हमने कोटा से 96 किलो मीटर दूर गांधी सागर मार्ग पर सिंघड़िया गांव से मोटर बोट से ये छोटे बड़े टापू देखे हैं। यहां मछलियों के पकड़ने का ठेका है। ठेकेदारों के पास स्टीमर, मोटर बोट और नाव है। कई क्विंटल मछलियां यहां से बाहर भेजी जाती हैं।

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जंगल में छोड दिए जाने से आवारा हो गए मवेशी। फोटो एएच जैदी

मछलियों पकडने की इनकी मोटर बोट से बड़े टापू को देखा है। जब ग्रामीणों का विस्थापन हुआ और वे मवेशियों को छोड गए तो उनके यही मवेशी जंगली हो गए। यहां सैकड़ों की संख्या मे ये गाये व बेल दिखाई दिए थे। इन टापू पर उतरने पर ये मवेशी हमला करने के लिए दौड़ते हैं। सिंघड़िया का ये टापू जैविक विविधता से भरपूर है। गिद्दों के अलावा अनेकों प्रकार के पक्षी हैं। यहां रेंगने वाले व जलीय जीवों को भी देखा जा सकता है। यहां ऊदबिलाव को भी देखा गया है। इस क्षेत्र में छोटी मछलियों के साथ बड़ी मछलियां 30 से 50 किलो तक की भी होती हैं। जहां चंबल गांधी सागर क्षेत्र व राणा प्रताप सागर क्षेत्र में विस्तत फैलाव वाले क्षेत्र में बहती है। वहीं जवाहर सागर, कोटा बैराज में चम्बल चट्टानों के बीच से गुजरती है।

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