
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

कहाॅं से लाऊॅंगा इतनी नज़र में ताब अभी।
न लाओ सामने चेहरे को बे नक़ाब अभी।।
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अभी तो और ज़माने के तौर बदलेंगे।
ज़मीं पे और भी आयेंगे इंक़लाब अभी।।
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अभी -अभी वो यहाॅं से गुज़रने वाले हैं।
निगाहे शौक़ बना लूॅ़गा कामयाब अभी।।
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ये मयकदा है यहाॅं शग़्ले मयकशी होगा।
यहाॅं तो रहने दे वाइज़ तेरी किताब अभी।।
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तमाम रात की तारीकियाँ मिटा देगा।
जो आसमान से निकलेगा आफ़ताब अभी।।
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जहाॅं भटक गए अहले वफ़ा कई “अनवर”।
हमारे दर्मियाॅं आएगा वो सराब अभी।।
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ताब*ताक़त
शग़्ले मयकशी* शराब का सेवन
तारीकिया*अंधकार
सराब*मरीचिका
शकूर अनवर