ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

शायद मेरा तड़पना ही कुछ काम कर गया।
उस बेवफ़ा के दिल को मुहब्बत से भर गया।।
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फिर मुश्किलों में जान अज़ाबों* में ज़िंदगी।
फिर दामने- हयात* गुनाहों से भर गया।।
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ऐसा चढ़ा नज़र में वो ज़ालिम सितम शिआर*।
मेरी नज़र से सारा ज़माना उतर गया।।
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मुजरिम था कोई और सज़ा और को मिली।
इल्ज़ाम किसके नाम था और किसके सर गया।।
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इस हुस्न और शबाब* का अंजाम सोचिए।
कितना हसीन फूल था आख़िर बिखर गया।।
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मैं जो चला तो साथ सितारे भी चल दिये।
मेरे क़दम रुके तो ज़माना ठहर गया।।
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“अनवर” अब आसमाॅं की तरफ़ देखते रहो।
आहो- फ़ुग़ाने दिल* से तुम्हारे असर गया।।
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अज़ाबो*कष्टों दुखों
दामने-हयात*ज़िन्दगी की झोली
सितम शिआर*ज़ालिम, प्रेमिका
शबाब* यौवन
आहो-फ़ुग़ाने दिल* दिल का रोना और फ़रियाद करना
शकूर अनवर
9460851271