रंगो-ख़ुश्बू का ख़्वाब हो ये साल। जैसे खिलता गुलाब हो ये साल।।

gulab

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

shakooranwar

रंगो-ख़ुश्बू का ख़्वाब हो ये साल।
जैसे खिलता गुलाब हो ये साल।।
*
सब दुखों से निजात* मिल जाये।
सब ग़मों का जवाब हो ये साल।।
*
हो मुहब्बत वरक़-वरक़* जिसमें।
ऐसी पूरी किताब हो ये साल।।
*
बज़्मे- शेरो- सुख़न* की धूम रहे।
मीर ओ ग़ालिब का ख़्वाब हो ये साल।।
*
चेहरे-चेहरे से रौनक़े बरसें।
रक़्स ए हुस्नो शबाब* हो ये साल।।
*
नग़्मगी* का शऊर* पैदा हो।
नज़्रे- चंगो-रबाब* हो ये साल।।
*
रंजिशें* सब तमाम हो जाऍं*।
बस मुहब्बत का ख़्वाब हो ये साल।।
*
ज़र्रा-ज़र्रा हो आफ़ताब “अनवर”।
इस क़दर कामयाब हो ये साल।।
*

निजात* छुटकारा, मुक्ति,
वरक़ वरक़*पृष्ठ दर पृष्ठ,
बज़्मे-शेरो-सुख़न*साहित्य की गोष्ठियाँ,
रक़्स ए हुस्न ओ शबाब* यानी यौवन और सौंदर्य युक्त नृत्य,
नग़्मगी*नग़मा गीत जैसी क़ैफ़ियत बात,
शऊर* समझ,
नज़्रे चंगो रबाब*संगीत को समर्पित,
रंजीशें*दुश्मनी,
तमाम हो जाये*समाप्त हो जाये,
आफ़ताब* सूरज,

शकूर अनवर
9460851271

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