
– विवेक कुमार मिश्र-

ठंड और गलन अपने चरम पर है
ठंड ठंड और इस तरह धुंध कि
कहीं कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है
सुबह हो गई पर कोहरा , अंधेरा और धुंध
अपनी जगह पर जमे हुए हैं
ठंड इतनी कि हथेलियां भी
जेब में पड़े पड़े ही ठंडी हो रही हैं
रजाई , कंबल और सात तहों के बीच
दुबका आदमी मन से ठंड महसूस कर रहा है
याद करने पर भी ऐसी ठंड याद नहीं आ रही
कोहरे से डूबी इस सुबह में
चाय और अलाव ही साथी और सहारा हैं
कहीं आने जाने की जल्दी मत मचाओ
थोड़ा ठहरों देखो यह घना कोहरा
समय के साथ छंट जायेगा
तब तक के लिए चाय पर
जीवन कथा और कहानियों का
पाठ करते चलें
शीतलहर ठंडी हवाओं और कोहरा का
ऐसा पसारा कि कुछ और देखने को हैं ही नहीं
चारों तरफ बस एक ही कथा
कोहरा कोहरा घना छाया रे कोहरा…
इस ठंड में आदमी से लेकर जीव तक
सब गले जा रहे हैं कुछ भी ऐसा नहीं है
जो गलन और जलन से बच रहा हो
सब ठंड में डूब रहा है
बाहर भीतर सब गल रहा है
यहां से वहां तक सब कुछ गल रहा है
हड्डियां भी गल रही हैं और इस गलन में
सब डूब रहे हैं और थरथर कांप रहे हैं
आदमी भीतर और बाहर तक गल जल जाता
गलता हुआ आदमी ठंड में
इतना जल उठता कि
आदमी को कुछ भी दिखाई नहीं देता
– विवेक कुमार मिश्र
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
F-9, समृद्धि नगर स्पेशल , बारां रोड , कोटा -324002(राज.)