तुम अपने हुस्न को कब तक बचा के रक्खोगे। हर एक फूल की क़िस्मत में है बिखर जाना।।

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ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

शकूर अनवर

बड़ा ही सख़्त* है इस दह्र से गुज़र जाना।
सभी को दे के मुहब्बत का दर्स* मर जाना।।
*
सफ़ीना बारहा मौजों से डूबकर उभरा।
बड़ा कठिन हुआ दरिया को पार कर जाना।।
*
तुम्हारे ज़ह्न में गहराइयों का ध्यान रहे।
बग़ैर सोचे समंदर में मत उतर जाना।।
*
तुम अपने हुस्न को कब तक बचा के रक्खोगे।
हर एक फूल की क़िस्मत में है बिखर जाना।।
*
चमन में था वही शाहिद* गई बहारों का।
जिसे निगाह ने सूखा हुआ शजर* जाना।।
*
हमें भी याद है अंजाम सच का क्या होगा।
हमें भी याद है “अनवर” वो दार* पर जाना।।
*

सख़्त*मुश्किल, कठिन
दर्स*पाठ, शिक्षा,
सफ़ीना*बेड़ा, बड़ी नाव
शाहिद*गवाह,
शजर*पेड़
दार* सूली

शकूर अनवर
9460851271

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