ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
चीर कर रख दे जो दिल को धार ऐसी अब नहीं।
वो निगाहे नाज़ की तलवार ऐसी अब नहीं।।
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मैं ये कैसे मान लूॅं होगी इनायत आपकी।
आपकी नज़रे करम सरकार ऐसी अब नहीं।।
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वो सुरूर ओ क़ैफ़* वो मस्ती का आलम अब कहाॅं।
शायरी में रोनक़े अशआर ऐसी अब नहीं।।
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घर मुहल्लों को तो तहज़ीबों* के हमले खा गए।
क्या बचेंगे शहर की दीवार ऐसी अब नहीं।।
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एक ही ढर्रे पे “अनवर” चल रही है जिंदगी।
दर्मियाँ रहती थी जो तकरार ऐसी अब नहीं।।
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सुरूर ओ क़ैफ़* मौज़ मस्ती
तहज़ीब*संस्कृति
शकूर अनवर
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