पहले थी केन्द्र सरकार की बाधा एक-अब चुनावी साल में एक के बाद एक

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-कृष्ण बलदेव हाडा-

kbs hada
कृष्ण बलदेव हाडा

राजस्थान के सामने प्रदेश के इस विधानसभा चुनावी साल से पहले पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) के रूप में ऐसी बाधा मौजूद थी जिसके लिए केंद्र सरकार से। राज्य को आर्थिक मदद की जरूरत है लेकिन अब एक के बाद एक केंद्र ने दो ओर समस्याएं राज्य सरकार के सामने खड़ी कर दी है और यह यह दोनों मसले ऎसे हैं जिनसे हजारों लोग प्रभावित-लाभान्वित होने वाले हैं तो राज्य सरकार पर राजनीतिक करने का आरोप लगा कर केन्द्र मदद से अपना हाथ खींच कर इन परियोजना को ठंडे बस्ते में धकेलने की कोशिश कर रहा है।
सबसे पहले बात पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) की तो श्रीमती वसुंधरा राजे जब राजस्थान की मुख्यमंत्री थी तो उन्होंने पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के किसानों की सिंचाई के लिए पानी की जरूरत और उनके प्यासे कंठो को तर करने के लिए पेयजल की आवश्यकता को समझा और इस योजना को बना कर मंजूर किया पर योजना जमीन पर ला पाती, इसके पहले ही उनकी सरकार बदल गई लेकिन सरकार बदलने पर भी आगे बढ़ाया बल्कि बार-बार केंद्र सरकार से इस परियोजना के लिये अपेक्षित आर्थिक सहायता करने का अनुरोध किया लेकिन तब केंद्र पीछे हट गया जबकि पिछले विधानसभा के चुनाव के समय राजनीतिक लाभ के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने अजमेर और जयपुर के ग्रामीण क्षेत्रों की जनसभाओं में पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिलवाने की घोषणा की थी लेकिन जब चुनाव में प्रदेश में भाजपा की सरकार बदल गई और फिर से अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बन गई तो प्रधानमंत्री अपने वायदे से मुकर गए। अब पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करना तो दूर, इस पर बात ही नहीं करते। न संसद में और न संसद के बाहर। संसद में इसलिए नहीं, क्योंकि वहां हनुमान बेनीवाल (नागौर) को छोड़कर शेष 24 सांसद भाजपा के बैठे हैं तो बात कौन करे? संसद के बाहर इसलिए नहीं, क्योंकि नरेंद्र मोदी जानते हैं कि यदि इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया तो राजनीतिक लाभ अशोक गहलोत और कांग्रेस के खाते में जाएगा लेकिन तमाम सारी राजनीतिक बाधाओं के बावजूद अशोक गहलोत इस परियोजना को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने पहले इस परियोजना के लिए 13000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था जबकि अब इसी महीने प्रस्तुत राजस्थान के बजट में 9600 करोड रुपए का प्रावधान रखा है लेकिन इस समूची परियोजना पर 40 हजार करोड रुपए से भी अधिक का खर्च आने का अनुमान है और इतनी बड़ी रकम वहन करना अकेले राज्य सरकार की क्षमता के बाहर की बात है।

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इसके विपरीत प्रधानमंत्री ने हाल ही में अब इस महत्वकांक्षी परियोजना को दो राज्यों राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच का मसला बता कर इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने में बाधा डालने के लिए एक कदम आगे और बढ़ाया है।
अब बात सरकारी कर्मचारियों को पेंशन के मसले की तो मौजूदा सरकार ने राज्य कर्मचारियों के एक बड़े वर्ग को
लाभान्वित करने के लिए जब ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को अपनाने का फैसला किया है तो केंद्र सरकार और उसके मुखिया नरेंद्र मोदी और उनकी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को इस चुनावी साल में इसमें अशोक गहलोत और कांग्रेस का राजनीतिक लाभ मिलता दिखने लगा आैर वे इस योजना को लेकर राजस्थान सरकार खासकर मुख्यमंत्री पर हमलो बोल रहे हैं। वित्त मंत्री ने तो सोमवार की अपनी जयपुर यात्रा के दौरान यहां तक कह दिया कि-” पहले राज्य सरकार अपनी वित्तीय स्थिति सुधारें। केंद्र सरकार न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) की राशि राज्य सरकार को कतई भी नहीं देगी।” यानी कुल मिलाकर केंद्र नहीं चाहता कि राज्य सरकार ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू कर कर्मचारियों का समर्थन से कोई राजनीतिक लाभ नहीं उठा ले।
अब ताजा मसला पचपदरा रिफाइनरी का है। निर्मला सीतारमण के जाने के अगले ही दिन बुधवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की महत्वकांक्षी परियोजना पचपदरा रिफाइनरी के मार्ग में बाधा डालने के लिए केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी बाड़मेर के दौरे पर आ पहुंचे। पुरी पचपदरा रिफाइनरी प्रोजेक्ट का अवलोकन करने के बाद राज्य सरकार को मदद देने के बजाय उस पर यह कहते हुए तंज कसने लगे कि राज्य के पास पैसा है नही आैर योजना का उद्घाटन करने चले है। साथ ही वे कहते है कि राजस्थान पहले उस पर बकाया ढाई हजार करोड़ रुपए का भुगतान करें। तब आगे बात बढ़ेगी और अगर यह भुगतान नहीं किया तो पचपदरा रिफाइनरी में राजस्थान की हिस्सेदारी 26 से घटकर केवल 16 प्रतिशत ही रह जाएगी।
यहां भी हरदीप सिंह पुरी खुद पूरी राजनीति लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। वह यह कह कर गए है कि मुख्यमंत्री के पास चुकाने के लिए ढाई हजार करोड़ रुपए तो है नहीं , उद्घाटन करने आना चाहते हैं। इसका लोकार्पण तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही करेंगे।
वैसे यहां बता दें कि बाड़मेर में रिफाइनरी लगाने की मंजूरी।उस समय मिली थी जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे और वर्ष 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हिंदुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड से एक आपसी समझ समझौता (एमओयू) हस्ताक्षरित किया था और उसके बाद यूनाइटेड प़प्रोग्रेसिव एलाइंस (यूपीए) सरकार की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने इसका शिलान्यास किया था। अब अगर पचपदरा रिफाइनरी का उद्घाटन होगा तो इसका लाभ किसे मिलना है? यह सब जानते है चाहे अब भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकार्पण के लिए आ जाए।
वैसे संकुचित राजनीतिक विचारधारा के कारण पूर्ववर्ती सरकारों की महत्वकांक्षी योजनाओं पर लगाम लगाने की भारतीय जनता पार्टी की पुरानी रणनीति रही है और राजस्थान में हाडोती संभाग के लोग इस तथ्य को झालावाड़, बारां और कोटा जिले की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वकांक्षी सिंचाई परियोजना परवन सिंचाई परियोजना की प्रगति में भाजपा के शासनकाल के दौरान लगाई गई बाधाओं को देखते हुए लगा सकते हैं क्योंकि इस परियोजना का शिलान्यास कांग्रेस के महासचिव के रूप में राहुल गांधी ने उस समय किया था जब प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी, लेकिन बाद में जब श्रीमती राजे के नेतृत्व में भाजपा सरकार आई तो यह परियोजना रोक देने के कारण पांच साल पिछड़ गई और यह तभी शुरू पाई जब दोबारा फिर अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने। पांच साल पिछड़ने के कारण आज भी इस पर काम चल रहा है, वरना यह कभी की पूरी हो चुकी होती।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं)

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