
-विवेक कुमार मिश्र-

आंखों का विस्तार
यहां से वहां तक
संसार अपने विस्तार में
आंखों का ही रूप संसार है
आंखें देखती हैं रचती हैं
और संसार से
जोड़ने का काम करती हैं
जहां तक हमारे कदम बढ़ते
आंखों के ही रूप बन चलते हैं
आंखें रुकती नहीं है
बस अपना विस्तार
रचती चली जाती हैं
जो विस्तार है
आंखों का विस्तार है
जो आकाश है
आंखों का ही आकाश है
आंखें ही रचती रहती संसार
आसपास का विस्तार
और वह सब जो दुनिया में है
वह सब आंखों का ही विस्तार है
– विवेक कुमार मिश्र
सह आचार्य हिंदी
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा
एफ -9 समृद्धि नगर स्पेशल बारां रोड कोटा -324002