चमकते हैं तेरी यादों के जुगनू। खॅंडर दिल का कहाँ सूना पड़ा है।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

तअल्लुक़* तुझसे ये कैसा पड़ा है।
मुझे हर शख़्स की सुनना पड़ा है।।
*
लडूॅंगा फिर मुक़द्दर से मैं अपने।
सितारों से नया झगड़ा पड़ा है।।
*
ये दुनिया इस क़दर वीराॅं* नहीं है।
तेरी ऑंखों पे ही पर्दा पड़ा है।।
*
चमकते हैं तेरी यादों के जुगनू।
खॅंडर दिल का कहाँ सूना पड़ा है।।
*
मकाने-दिल मेरा खाली न समझो।
मगर इसमें अभी ताला पड़ा है।।
*
हुई सर-सब्ज़* खेती नफ़रतों की।
ज़मीने-दिल पे ही सूखा पड़ा है।।
*
मिलेगा जब समन्दर तो कहूॅंगा।
मेरी झोली में इक दरिया पड़ा है।।
*
अभी सूरज कहाँ डूबा है “अनवर”।
अभी तो शाम तक रस्ता पड़ा है।।
*

तअल्लुक़*सम्बंध
वीराॅं*उजड़ी हुई
सर-सब्ज़*हरी भरी

शकूर अनवर
9460851271

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