महफिल

प्रकाश केवडे

prakash kevde
प्रकाश केवडे

एक रोज तेरी
महफ़िल में हम न होंगे

न खुशियां कम होंगी
न उजाले कम होंगे
कोई छोटे बहर पढेगा
तो कोई ग़ज़ल कहेगा
ये किताबें और रिसाले कम न होंगे।

एक रोज तेरी महफ़िल में हम न होंगे

ये मायूसी ये ग़म ये सोग
ये परेशानी से सराबोर
बदहवास लोग
गली कूचों में ज़श्न ए अरूस मनाते लोग
शुक्र है कभी कम न होंगे

एक रोज तेरी महफ़िल में हम न होंगे।

होगी नयी हीर, कोई नयी सोहणी
होगा कोई रांझा,कोई मस्त महिवाल
इश्क वही पुराना शिकवा गिला मलाल
मोहब्बत के गीत कभी कम न होंगे

एक रोज तेरी महफ़िल में हम न होंगे।

प्रकाश केवडे

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