ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
अगर तेल अपने ख़ज़ीनों* से निकला।
ये समझो कि सोना ज़मीनों से निकला।।
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ये मिल कारख़ाने ये कोटा की सनअत*।
ये शहरे-तमद्दुन* मशीनों से निकला।।
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कुदूरत* ने घर कर लिया है दिलों में।
मुहब्बत का जज़्बा* भी सीनों से निकला।।
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सफ़र में हमें नाख़ुदाओं* ने लूटा।
यही शोर सारे सफ़ीनों* से निकला।।
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उगलता है जो ज़ह्र नफ़रत का “अनवर”।
वही साॅंप फिर आस्तीनों से निकला।।
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ख़ज़ीनों*ज़मीन के नीचे के ख़ज़ाने संसाधन
सनअत*उद्योग फैक्ट्रियाँ आदि
शहरे तमद्दून*सांस्कृतिक नगर
क़ुदूरत*बुराई नफ़रत
जज़्बा*जोश भाव
नाख़ुदाओं*मल्लाहों
सफ़ीनाें* नावों का बेड़ा
शकूर अनवर
9460851271