उनकी बाहों में थी ख़ुश्बू गै़र की। हम गले के हार से ज़ख्मी हुए।।

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ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

shakoor anwar
शकूर अनवर

अबरु ए ख़मदार* से ज़ख्मी हुए।
हम इसी तलवार से ज़ख्मी हुए।।
*
दुश्मनों की सफ़* से बचकर आये तो।
घर के पहरेदार से ज़ख्मी हुए।।
*
रख दिया दिल तोड़कर हालात ने।
सुबह दम* अख़बार से ज़ख्मी हुए।।
*
बेमुरव्वत बेवफ़ा वादा शिकन*।
हम तेरे किरदार* से ज़ख्मी हुए।।
*
उनकी बाहों में थी ख़ुश्बू गै़र की।
हम गले के हार से ज़ख्मी हुए।।
*
अपना चेहरा देखकर हैरान हैं।
आईने के वार से ज़ख्मी हुए।।
*
अपने ही वोटों का सौदा कर लिया।
अपनी ही सरकार से ज़ख्मी हुए।।
*
सारी महफ़िल वज्द* के आलम* में है।
सब मेरे अशआर से ज़ख्मी हुए।।
*

जाके “अनवर” मंज़िलों के पास हम।
क़ाफिला सालार से ज़ख्मी हुए।।

*
अबरु ए ख़मदार*तिरछी भवें
दुश्मनों की सफ़*शत्रुओं की पंक्ति
सुबह दम*प्रात काल
वादा शिकन*वादा तोड़ने वाला
किरदार*चरित्र
वज्द*झूमना हाल आना
आलम*स्थिति हालत
क़ाफिला सालार*क़ाफ़िले का मुखिया कमांडर

शकूर अनवर
9460851271

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