लाल डायरी का खेला

-द ओपिनियन-

राजस्थान में मचे सियासी घमासान में लाल डायरी चर्चा में है। लाल डायरी में क्या है यह तो इसका वास्तविक लेखक ही जानता है, लेकिन इसको लेकर अटकलें और गॉसिप का बाजार गरम है। यदि लाल डायरी रहस्यों का खजाना है तो कोई उसे इतना असुरक्षित क्यों छोड़ेगा कि दूसरा उठाकर ले जाए। लेकिन डायरी का मसला चुनावों से पहले उछला है तो यह अब अगले छह सात महीने तक उछलता ही रहेगा। विपक्ष इसको लेकर हमलावर रहेगा और सत्ता पक्ष में भी कुछ लोग इसको लेकर जवाबी हमला विपक्ष पर करेंगे कि यह आपकी ही साजिश है। अब इस लाल डायरी में सच में कुछ है या नहीं यह तो हम नहीं कह सकते लेकिन इसमें संदेह, संशय व आरापों के छींटे अवश्य हैं और वे आने वाले समय में कुछ लोगों को लगते रहेंगे। कोई आरोप लगाएगा और कोई पलटवार करेगा। लोग यह भी कहेंगे कि ऐसी डायरिया तो राजनीति के अखाड़े में भरी पड़ी हैं । एक ढूंढो तो दस मिलेंगी। इस लाल डायरी में कुछ सनसनीखेज है या नहीं कहा नहीं जा सकता लेकिन इससे इतना तो हो ही गया कि सदन में मर्यादा को तोड़ दिया गया। गरिमापूर्ण आचरण की जगह धक्का मुक्की नजर हो गई। लोग आरोप लगा रहे हैं और कुछ लोग सवाल खड़े कर रहे हेैं। संदेह का घेरा है लाल डायरी। अब यह किसकी सियासी बलि लेगी या किसको ठगेगी फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन संसदीय मर्यादा के हनन की बातें तो सामने आ गई हैं। सदस्य विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी के सामने आए, सदन में माइक छीने गए, धक्कामुक्की हुई और निलंबन हुआ। सदन में बात कहने के लिए नियम कायदे हैं तो फिर उनका अनुसरण क्यों नहीं किया जाता। यह नौबत ही क्यों आए कि नियम कायदों को तोड़ा जाए। सदस्यों का सदन मे बोलने की इतनी सुरक्षा है कि वहां कही गई बात को कहीं भी चुनौती नहीं दी जा सकती। लगता है राजनीति अब खेला हो गई। इस बार लगता है राजस्थान में फिलहाल लाल डायरी का खेला चलेगा।

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