ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
हादसों* से वो सख़्त बनता गया।
उसका लहजा* करख़्त* बनता गया।।
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जिसमें फूटी थी याद की कोंपल।
फिर वो पौधा दरख़्त बनता गया।।
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जो तेरा ग़म मुझे मयस्सर था।
बस वही साज़ो-रख़्त* बनता गया।।
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बुलबुले-ख़ुश-गुलू* न बन पाया।
मैं वही संगे सख़्त* बनता गया।।
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पहले जज़्बा* था इसमें ख़िदमत* का।
फिर सियासत में तख़्त* बनता गया।।
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अब वो दिल के क़रीब हैं “अनवर”।
बनते बनते ये बख़्त* बनता गया।।
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हादसों*दुर्घटनाओं
लहजा*बोलचाल
करख़्त*कठोर
साज़ो-सख़्त*सामान असबाब
खुश-गुलू*मधुर आवाज़ वाला
संगे सख़्त*कठोर पत्थर
जज़्बा*भावना
ख़िदमत*सेवा
तख़्त*सिंघासन कुर्सी
बख़्त* भाग्य
शकूर अनवर
9460851271