
-द ओपिनियन-
भारत के साथ रिश्तों में असहजता के बीच अब यह साफ हो गया है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी -20 देशों की शिखर बैठक में भाग लेने भारत नहीं आएंगे। राष्ट्रपति शी की जगह वहां के प्रधानमंत्री ली कियांग चीन का प्रतिनिधित्व करेंगे। लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन का भारत आना तय है। बाइडेन की यह यात्रा द्विपक्षीय भी होगी। वह 7 सितंबर को भारत आएंगे। आठ सितंबर को उनकी पीएम मोदी के साथ महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठक है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शिखर सम्मेलन में व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं होने के अपने फैसले से अवगत करा चुके हैं क्योंकि उन्हें यूक्रेन में ‘विशेष सैन्य अभियान‘ पर ध्यान केंद्रित करना है। रूसी राष्ट्रपति पिछले साल नवंबर में भी जी-20 के बाली शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुए थे। पुतिन गत दिनों दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स देशों की बैठक में भी शामिल नहीं हुए थे। पुतिन की विदेश यात्राओं का रास्ता यूक्रेन युद्ध बार-बार काट रहा है।
चीनी राष्ट्रपति शी का भारत नहीं आना अप्रत्याशित नहीं है। लद्दाख सीमा पर दोनों देशों के बीच तनाव के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में गिरावट आई है। विश्व मंचों पर पिछले साल भर में चीनी राष्ट्रपति शी व पीएम मोदी दो बार आमने -सामने हुए लेकिन मुलाकात द्विपक्षीय स्तर पर बैठक के मुकाम पर नहीं पहुंच सकी। इससे पहले भारत ने चीन और पाकिस्तान के रुख को देखते हुए एससीओ देशों की शिखर बैठक वर्चुअल आयोजित की थी। पीएम मोदी ने एक इंटरव्यू में जी-20 देशों के विभिन्न बैठकों के क्रम में जम्मू कश्मीर व अरुणाचल में आयोजित बैठकों पर चीन पाकिस्तान की आपत्तियों को खारिज कर चुके हैं। साफ है चीनी राष्ट्रपति शी को विभिन्न मसलों पर भारत के रुख का साफ पता है, इसलिए लगता है कि शी ने इस समय भारत का दौरा न करना ही बेहतर समझा। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने सोमवार को राष्ट्रपति शी के जी 20 की शिखर बैठक में शामिल नहीं होने की आधिकारिक जानकारी दी। हालांकि प्रवक्ता ने इस उच्च स्तरीय शिखर सम्मेलन से शी के अनुपस्थित रहने का कोई कारण नहीं बताया। राष्ट्रपति शी इस सप्ताह जकार्ता में आसियान (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ) और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भी शामिल नहीं होंगे। प्रधानमंत्री ली ही इंडोनेशिया में आसियान शिखर सम्मेलन में चीन का प्रतिनिधित्व करेंगे। पीएम मोदी आसियान की बैठक में शामिल होंगे। वे छह सितंबर को जकार्ता जाएंगे। भारत के लिए यह बैठक बहुत अहम है। भारत आसियान देशों के साथ अपने रिश्ते और मजबूत करने में जुटा है।
क्या है चीन की आशंका
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत न आने की मुख्य वजह भारत चीन रिश्तों में जारी तनाव को ही माना जा रहा है। संभवतः बीजिंग इस बात को लेकर आशंकित है कि यदि राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत की यात्रा पर जाते हैं तो संभवतः उनका उस गर्मजोशी से स्वागत न हो। कई यूरोपीय देश रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद चीन के रूस समर्थित रुख से भी नाराज हैं। वहीं अमेरिका चीनी आक्रामकता के खिलाफ जापान, दक्षिण कोरिया को मिलाकर एक अलग गुट बनाने की तैयारी भी कर रहा है। ऐसे में लगता है कि चीन ऐसे स्थिति का सामना न करना चाहे जहां उसके प्रतिद्वद्वी देशों का जमावड़ा है।
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ये हैं जी-20 के सदस्य
इस ग्रुप में अमेरिका, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, यूरोपीय संघ, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया,इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, ब्रिटेन शामिल हैं।
कब हुई थी स्थापना
जी-20 की स्थापना वर्ष 1999 में एशियाई वित्तीय संकट के बाद की गई थी। तब इसकी स्थापना वित्त मं़ित्रयों, केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों के लिए आर्थिक मंच के रूप में की गई थी, जहां पर बैठकर वैश्विक वित्तीय मसलों की चर्चा हो सके। दरअसल ग्लोबल इकोनॉमिक मुद्दों को आपस में ही कैसे हल किया जाए, इस संगठन का मकसद यही था। साल 2008 में जब आर्थिक मंदी आई थी, उसके बाद यह फैसला लिया गया था कि इसकी बैठक में सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी हिस्सा लेंगे।
इसलिए खास है जी-20
वैश्विक अर्थव्यवस्था की दृष्टि से जी-20 बहुत अहम है। इसके सदस्यों देशों का दुनिया की जीडीपी की 85 प्रतिशत है। इसके अलावा यह,75 प्रतिशत वैश्विक व्यापार और 60 प्रतिशत आबादी के बराबर है। इसलिए यह संगठन जो भी फैसला लेता है, वह दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर डालता है।