हम तो मरने के लिए जीते रहे। लोग जीने के लिए मरते हैं।।

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क़तआत (मुक्तक)

-शकूर अनवर-

शकूर अनवर

1
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सियाह ज़ुल्फों में चेहरे का चाॅंद रोशन है।
बहुत हसीन हैं फिर उस पे नील सी* ऑंखें।
मुझे तो उसके मुक़द्दर पे रश्क आता है।
जिसे तलाश रही हैं ये झील सी ऑंखें।।
2
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फिर झूम के उट्ठी है घटा जाम उठाओ।
हाथ अपने ये साअत*बड़ी मुश्किल से लगी है।
क़िस्मत में किनारा है तो मिल जायेगा “अनवर”।
मायूस नज़र क्यूॅं तेरी साहिल से लगी है।।
3
**
ज़िंदगी नाम है दुशवारी का।
लोग ख़तरों से बहुत डरते हैं।
हम तो मरने के लिए जीते रहे।
लोग जीने के लिए मरते हैं।।
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नील सी*नीले रंग की तरह
रश्क* ईर्ष्या
साअत* ये घड़ी पल

शकूर अनवर
9460851271

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