
डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)
तिरुचि के पास हाईवे से दो किमी दाईं ओर मारीअम्मन देवी का मंदिर है। इस स्थल का नाम समयपुरम है। देश-विदेश से श्रद्धालु इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं। मंदिर की प्राचीनता को लेकर कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। लेकिन मान्यता के अनुसार इस मंदिर का संबंध श्रीरंगम के रंगनाथस्वामी मंदिर से है। देवी की प्रतिमा काफी चमत्कारी मानी जाती है। पर्व और त्यौहार के दिनों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। मंदिर का मौजूदा प्रशासन तमिलनाडु सरकार के देवस्थान विभाग के अधीन है।
संरचना और इतिहास
मंदिर परिसर काफी बड़ा और भव्य है। पूरा समयपुरम गांव ही इस मंदिर से बसा है। तिरुचि से यहां तक पर्याप्त बस सेवाएं हैं। मंदिर में समयपूर्तल देवी मां का आराध्य विग्रह है। मंदिर के इस मुख्य विग्रह का निर्माण रेत और चिकनी मिट्टी से हुआ है इसलिए अन्य मंदिरों की तरह यहां इनका अभिषेक नहीं होता। देवी की उत्सव मूर्ति के अभिषेक की परम्परा का निर्वाह पीढियों से होता आ रहा है। श्रद्धालुओं की मारीअम्मन पर गहरी और अटूट आस्था है। वे मानते हैं कि देवी किसी भी तरह के रोग को ठीक कर देती हैं। उसी अनुरूप वे प्रार्थनाएं भी करते हैं। मंदिर की हुण्डी में श्रद्धालु धातु और स्टील से निर्मित शरीर के आकार चढ़ाते हैं। देवी को माविलक्कू अर्पित होता है। गुड़, चावल व घी से यह बनता है जिस पर दीपक प्रज्वलित होता है। देसी नमक भी मंदिर के बाहर ध्वज स्तम्भ के पास चढ़ाते हैं। मंदिर परिसर के गलियारे में ही दुकानें संचालित हैं जिनसे हजारों लोगों की आजीविका चलती है। मंदिर के अहाते के बाईं तरफ जलकुण्ड हैं जिसमें श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं। तमिलनाडु में नकद चढ़ावे की दृष्टि से इस मंदिर का नाम पलनी मुरुगन मंदिर के बाद आता है।
यह क्षेत्र विजयनगर शासकों की सैन्य छावनी थी। उस वक्त राजा ने मन्नत मांगी थी कि अगर युद्ध में उनकी जीत होती है तो वे यहां मंदिर बनाएंगे। जीत के बाद राजा ने ऐसा ही किया। पहले मारीअम्मन मंदिर का प्रशासन तिरुवणैकावल मंदिर के अधीन था। बाद में तमिलनाडु सरकार के बोर्ड ने इस कार्य संचालन को कब्जे में किया। मंदिर में अन्नदान योजना भी लागू है। मंदिर की मौजूदा संरचना को लेकर जो शिलालेख प्राप्त है उसमें राजा विजयराय चक्रवर्ती के नाम का उल्लेख है जिनका शासन अठारहवीं सदी में था। बहरहाल, यहां देवी की पूजा सदियों से हो रही है। जबकि समयपुरम मंदिर का निर्माण नहीं हुआ था।
पौराणिक कहानी
एक मान्यता के अनुसार शताब्दियों पहले यह मूर्ति श्रीरंगनाथ स्वामी मंदिर में थी। मंदिर के एक पुजारी का आभास हुआ कि इस मूर्ति की शक्ति से वे रोगग्रस्त हैं इसलिए उन्होंने विग्रह को वहां से हटवाया। श्रीरंगम के बाहर यह विग्रह किसी को मिली जिसने एक छोटे से मंदिर का निर्माण कर इसका नाम कण्णनूर मारीअम्मन मंदिर रखा। विभिन्न तरह की मन्नतें मांगने और उनका निर्वाह करते भक्तगणों को यहां देखा जा सकता है। समाजविज्ञान और धर्म से जुड़े अधिकांश शोध कार्यों में समयपुरम मारीअम्मन का उल्लेख मिलता है। देवी पर आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं ने तमिलनाडु से बाहर भी समयपुरम मारीअम्मन के मंदिर बनाए हैं अथवा मूर्तियां स्थापित की हैं। ऐसे उदाहरण श्रीलंका, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका और फिजी में देखने में आते हैं। समयपूर्तल देवी मां को सभी देवियों की माता का दर्जा प्राप्त है। यह राज्य का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां प्रवेश द्वार से ही देवी के दर्शन हो जाते हैं।
उत्सव और आयोजन
तिरुचि से समयपुरम की दूरी 15 किमी है। चैत्र महीने का रथोत्सव तेरह दिन तक चलता है। चैत्र महीने के पहले मंगलवार को यह शुरू होता है और दसवें दिन रथ पर मारीअम्मन देवी की सवारी निकलती है। हजारों श्रद्धालु रथ को खींचने जोश से उमड़ पड़ते हैं। रथोत्सव के दौरान समयपुरम कस्बे में किसी भी वाहन के प्रवेश की अनुमति नहीं होती। प्रधान मार्ग से ही लोगों को मंदिर तक एक किमी की पैदल यात्रा करनी होती है।
(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)