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-द ओपीनियन डेस्क-

कांग्रेस छोडने के बाद गुलाम नबी आजाद ने पहली बार रविवार को घाटी में जनसभा को संबोधित किया। हालांकि वह इससे पहले वह जम्मू में रैली कर चुके हैं। लेकिन कल की उनकी रैली खास है। इसमें उन्होंने अपनी दृष्टि और दिशा दोनों को साफ कर दिया। वह भावनाओं में नहीं बहे और यर्थाथ के धरातल पर खड़े होकर अपनी बात कही। जनसभा में उन्होंने साफ कहा कि वह अनुच्छेद 370 पर लोगों को गुमराह नहीं करना चाहते। आजाद ने कहा, मैं किसी को भ्रमित नहीं करूंगा। न ही वोट के लिए और न ही राजनीति के लिए। जम्मू कश्मीर जहां अनुच्छेद 370 एक भावनात्मक मसला है वहां साफ यह कहना कि मैं कोई झूठा वादा नहीं करूंगा मायने रखता है। उन्होंने कहा, अनुच्छेद 370 के फैसले को बदलने के लिए लोकसभा में दो तिहाई बहुमत चाहिए। इसके अलावा राज्य सभा में भी बहुमत होना चाहिए। देश में इस वक्त ऐसा कोई दल नहीं है जो इतना बहुमत हासिल कर सके। उन्होंने कहा, मैं या कांग्रेस पार्टी या तीन क्षेत्रीय दल आपको अनुच्छेद 370 वापस नहीं दे सकते। न ही टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, द्रमुक या राकांपा प्रमुख शरद पवार।

गुलाम नबी आजाद से मुलाकात करते समर्थक

आजाद ने आगे कहा, वह ऐसे मुद्दे नहीं उठाएंगे जिन पर उनका कोई नियंत्रण नहीं। कांग्रेस चुनाव दर चुनाव गिर रही है और मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 350 से अधिक सीटें मिल सकती हैं। राजनीति में किसी भावनात्मक मसले पर इस तरह दो टूक कोई बात कहना आसान नहीं है। आजाद ने अपना रुख साफ कर कश्मीर की दृष्टि से एक राजनीतिक जोखिम उठाया है लेकिन उनकी बात को गौर से सुना जाना चाहिए। उन्होंने अपने आगे का रास्ता साफ कर दिया है।
आजाद ने दो-तीन अहम बातें और कही। उन्होंने कहा कि नई पार्टी के गठन की घोषणा अलगे दो-तीन दिन में कर दी जाएगी। पार्टी की विचारधारा आजाद होगी। नए राजनीतिक दल को एजेंडा जम्मू कश्मीर के राज्य के दर्जे की बहाली और लोगों की नौकरी तथा भूमि अधिकारों के लिए सघर्ष करना पड़ेगा । साफ है आजाद ने न नेताओं को भ्रम में रखा और न अवाम को गुमराह किया। आजाद ने अपनी भावी पार्टी के लिए एक तरह से आचार संहिता ही तय कर दी। अब अपनी नई पारी की शुरुआती दौर में ही उन्होंने अपनी दिशा तय कर दी!

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