
ग़ज़ल
शकूर अनवर
हम भी दुनिया को भाॅंप बैठे हैं।
आस्तीनों में साॅंप बैठे हैं।।
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इनके चहरों को ग़ौर से देखो।
ये जवानी में हाॅंप बैठे हैं।।
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ऐसी गर्मी के सख़्त मौसम में।
किसका डर है जो काॅंप बैठे हैं।।
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दिल में जो है हमारे क़ातिल के।
उस इरादे को भाॅंप बैठे हैं।।
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जोगियों के लिबास में “अनवर”।
हम गुनाहों को ढाॅंप बैठे हैं।।
शकूर अनवर
9460851271
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