मेला अरे ! यह जीवन का मेला है …

मेला किसी लोक उत्सव से कम नहीं होता। हाल ही में कोटा में दशहरा मेला खत्म हुआ है लेकिन इस त्योहारी सीजन में एक के बाद एक मेलों का आयोजन का क्रम जारी है। कहीं पुष्कर मेला तो कहीं चंद्रभागा मेला। कहीं छठ की पूजा के साथ मेला तो कहीं कार्तिक स्नान की परंपरा के साथ मेले का आयोजन। मेले स्थानीय संस्कृति के भी परिचायक होते हैं। यहां आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लोक संस्कृति की झलक देखने को मिल जाती है। मेले की सार्थकता को प्रदर्शित करता है यह डॉ विवेक कुमार मिश्र का यह आलेख। सं.

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दशहरा मेला फाइल फोटो अखिलेश कुमार

– विवेक कुमार मिश्र-

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

मेला सभ्यता और संस्कृति का उत्सव है। मेले में आकर हमें तरह तरह से सोचने का और संसार को देखने जानने का अवसर मिलता है। लोग अपनी जरूरतों को लेकर मेले में आते हैं। मेला है कि सबकी जरूरत को पूरा करता है। यहां किसान से लेकर मजदूर तक और मध्य वर्ग से लेकर उच्च वर्ग तक सबकी दुनिया मिल जाती और हर दुनिया एक दूसरे को इतनी सहजता से लेती है कि जैसे मनुष्यों के समुद्र में सब मिल गये हों। संसार की एकरूपता और जन जन को एक भावभूमि पर थोड़े देर के लिए सही मेला जोड़ देता है। जब आप मेले में आते हैं तो मेला खास को भी आम बना देता है। लोगों की भीड़ का ऐसा रेला चलता है कि बस सब चलें जाते हैं उसमें। यहां कोई खास रह ही नहीं पाता और ज्यादा खास रहने की चाहत हो तो किसी हाई प्रोफाइल माल में चले जाइए। यहां तो वहीं आनंद ले सकता है जिसमें जन सामान्य का भाव हो जो आम आदमी के संवेदन को समझता हो और हर तरह के विशेषीकृत पद से दूर रहकर देश के भाव को अपना जीवन भाव और मन का स्थाई भाव समझता हो तो उसे यहां आनंद ही मिलता है। यहां संसार की गति दिखाई देती है उस गति में अपने होने की स्थिति को जानना समझना ही जीवन को उल्लास के साथ जीना है। हर किस्म के आदमी की यहां पूरी एक दुनिया है। कोई भी यहां अपने को अकेला महसूस नहीं करता। सबकी दुनिया के सब साथी यहां स्थाई भाव की तरह मिलते हैं। कोई ऐसा नहीं कि उसके काम का यहां कुछ न हो। मेले में चलते चलते जो दुनिया दिखती है वह कुछ यों होती है –
1. बच्चों का मन और प्राण ही मेले में बसता है। मेला जैसे उन्हें बुला रहा हो। एक बार किसी बच्चे से जिक्र कर दीजिए की मेला चलना है फिर जब तक मेला आप चले नहीं जायेंगे तब तक चौन नहीं। बच्चे आश्चर्य से भीड़ और झूले को देखते हैं। यहां उनके लिए तो पूरी दुनिया ही पड़ी है। बच्चों को झूला पसंद होता है। डरते हैं पर झूला जरूर झूलेंगे। एक झूले से मन नहीं भरता। जबतक दो तीन झूला नहीं झूल लेते तब तक हटते ही नहीं। झूले के बाद बांसुरी, पुपाड़ी / पिपहड़ी /सीटी और इसी तरह के नये – नये शोर यंत्र लेते हैं। कौतूहल, मेले और बच्चे साथ साथ चलते हैं।

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फोटो अखिलेश कुमार

2. बच्चों की तरह ही गृहणियां घरेलू साथ सज्जा के हर सामान देखती रहती हैं। खरीदारी से पहले मोलभाव, एक से दस दुकान तक पूछना फिर जो पसंद आए उसे लेना, कुछ अलग हटकर नया पदार्थ दिखता है तो उसे लेने के लिए मचलना। बाजार मेले सब घरेलू साज सज्जा के सामान से भरे होते हैं। इसे गृहणियां ही समझती हैं और अपनी जरूरत और उससे भी ज्यादा ज्यादा जो मन को भा जाता उसे यहां से उठा लेती हैं। जब गृहणी सामान खरीद लेती है तो उसे जैसे दुनिया की खुशी मिल गई हो। फिर दो चार दिन एक एक सामान को देखना और जमाना इस तरह उसका कार्य चलता रहता है।
3. किसान अपने खेती बाड़ी के सामान खरीदता है। पालतू पशुओं के लिए सजावट के सामान यहीं मिलते हैं। घंटियां , रंगीन सुंदर सुंदर पगहे जिससे वे अपने पशु को बांध कर रखते हैं और इसके अलावा इस संसार में जो कुछ नया चल रहा है वह इस मेले में आ जाता है जिसे देखते खरीदते उसकी उपयोगिता पर बात करते समूह का अपना ही आनंद है। यहां नये नये कृषि यंत्र दिखते हैं जो मेले के अलावा कहीं नहीं होता। इसे किसान और पशुपालक अपनी गाढ़ी कमाई से खरीदते हैं।
4. मेले में कोई स्थाई भाव का सामान खरीदने नहीं आता। संसार की क्षणभंगुर स्थिति की तरह पदार्थ की भी स्थिति है इसे मेले से अच्छा कौन समझ सकता है। मेले में बस घूमने , संसार देखने और अपार जनसमूह को देखने आते हैं। चलें जा रहे हैं। बस चलें जा रहे हैं यहीं इस जीवन मेले का सच है।
5. मेले में एक रूई के फाहे जैसी मिठाई होती है जो मुंह में रखते – रखते गल जाती है गुलाबी रुई के फाहे सी यह मिठाई गुड़िया का बाल नाम से जानी जाती है। हर कोई इसके लिए मचलता है।
6. मेले में लोग घूमने खाने और मुक्त भाव से आनंद लेने आते हैं। कोई नसीराबादी कचौरा खरीद रहा है तो कोई साफ्टी, आइसक्रीम, पापकार्न, छोला भटूरा चाऊमिन से लेकर मोमोज तक जो कुछ आप सोच सकते हैं वह सब है बस आप मेले में घूमते हुए खाने से परहेज़ न करें। यहां गंभीरता के लिए कोई जगह नहीं है। जो कोई गंभीर होकर चलता उसे मेला पसंद नहीं करता। कोई भी ऐसे गंभीर प्राणी को धक्का देकर आगे निकल जायेगा।
7. मेले के यदि भीड़ वाले इलाके में हैं तो अपने आप को समेट कर रहे। अपने जेब को संभाल कर रखें आजकल जेब से ज्यादा मोबाइल को संभालते मिल जायेंगे। इतना तो तय है कि मेले में हैं तो संभल कर रहें । संभल कर चलते हुए ही मेले का आनंद उठा पायेंगे।

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फोटो अखिलेश कुमार

सबकी दुनिया यहां पूरी तरह से तैयार रहती है जिसे जो जरूरत है वह सब यहां मिल जायेंगे। आखिर वह मेला में है। यदि यहां भी नहीं मिला तो फिर आदमी कहां जायेगा। यह जीवन का मेला है। यहां आकर हमें हमारा संसार मिल जाता है। यह बाजार है पर उस तरह बाजार नहीं जैसे कि आप बाजार में जाते हैं। बाजार का रूप यहां एकदम से अलग होता है और अलग अलग तरह के उत्पाद से, सामान से यह भरा होता है। हर उम्र हर तरह के लोगों के लिए यह सजा होता है। लोगों की भीड़ में लोगों से संवाद करना मेला ही सीखाता है । यहां जो परेशान होता वह भी एक बारगी इतनी बड़ी दुनिया को देखकर ऐसे खुश हो जाता है कि उसे लगता ही नहीं कि कभी वह परेशान भी रहा होगा । मेला बच्चों का होता है , युवाओं का होता है, स्त्री पुरुष का होता है यहां तक कि बुजुर्ग अलग ढ़ंग से मेला देखते हैं। देखने के लिए, विचार करने के लिए और दुनिया कहां जा रही है उस हिसाब से मेले का आनंद लेने के लिए तमाम किस्म के विचार प्रिय और ज्ञान प्रेमी भी मेले में मिलते हैं। कुछ ऐसे उत्साही लोग होते हैं कि वो कुछ अलग हटकर नया देखने के लिए कहीं भी चलें जाते हैं। इस तरह, तरह – तरह के नये पुराने लोगों से मेला भरा रहता है। कोई भी यहां अपने को अलग थलग नहीं पाता सबके हिसाब की दुनिया यहां उमड़ रही होती है। एक तरह से यहां मनुष्यों का समुद्र ही चला जा रहा है किसी को किसी तरह की जल्दी नहीं है। स्थाई रूप से मेले में मन को लेकर आते हैं और एक बार जब आप मेले में आ जाते हैं तो फिर जाने का , कहीं और जाने का भाव मन में आता ही नहीं बस यही लगता है कि किसी ऊंचाई पर बैठकर संसार दर्शन की तरह मेले का दर्शन किया जाये। लोग सहज गति से चलते हैं इस गति में आगे पीछे की भीड़ आपको अलग ही लेकर चली जाती है। कई बार ऐसा भी होता है कि आप चलना नहीं चाहते और भीड़ अनायास चला देती है। इस भीड़ का अपना शास्त्र और सौंदर्य है। यह उसे ही समझ में आ पाता है जो इस तरह से संसार को और संसार के मेले को देखता आ रहा है। उसे कुछ भी आश्चर्य नहीं लगता। उसे मेला जीवन का लगता है , यहां मनुष्य का संसार मिलता है। कर्म , उत्साह और जीवन सौंदर्य का ऐसा संसार जहां सब मिलकर उत्सव रचते हैं। मेले में आकर हम मुक्त हो जाते हैं। एक ऐसा बाजार जो जीवन का उत्सव रचता है यहां सबके लिए कुछ न कुछ होता है कोई ऐसा नहीं जो यह कहे कि मेला में मेरे लिए कुछ नहीं है। अरे ! यदि मेला में नहीं है तो फिर कहां इच्छाएं पूरी होंगी। मेला में लोगों का हुजूम उमड़ रहा है। कोई झूला झूल रहा जो झूल नहीं पा रहा है वह देखकर आनंद ले रहा है। भीड़ भी यहां भीड़ से ही अनुशासित होती है। सब अपने अपने हिसाब से चलते रहते हैं। यहीं मेला का सौंदर्य है। जो गति से जीवन की दौड़ से संचालित होता रहता है।

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