
-अखिलेश कुमार-

(फोटो जर्नलिस्ट)
कोटा। भारत की पारंपरिक गोदना कला का दौर एक बार फिर जोर शोर से लौट आया है। गुदना कला ने आज फैशन का रूप ले लिया है। अब गोदना कला में पारंपरिक के साथ आधुनिक डिजाइन भी शामिल की गई हैं। कोटा के दशहरा मेला में इन दिनों पारंपरिक गोदना कलाकार आए हुए हैं।

शायद यह बालक इसीलिए गोदना कराने की जिद कर रहा है। करीब एक दर्जन कलाकार टेटू बनाते हैं। लेकिन इनका टेटू बनाने का तरीका परंपरागत है। वैसे आजकल टेटू बनवाना भी फैशन में शुमार है। लेकिन इन गोदना कलाकारों के पास अधिकांश लोग कलाई पर अपना या अपने प्रियजन का नाम गुदवाने आते हैं। राजस्थान की कई जातियों में गोदना का प्रचलन रहा है और दशहरा मेला में ग्रामीण विशेष रुप से इसी मकसद से आते थे। इसमें स्त्रियां अपनी कलाई पर पति का नाम गुदवाती थीं।

इसके अलावा कई लोग देवी देवताओं के साथ सर्प, बिच्छु इत्यादी का गोदना भी गुदवाते थे। लेकिन धीरे-धीरे लोग इससे विमुख होते गए क्योंकि इसे संक्रमण का खतरा माने जाना लगा था। लेकिन पाश्चात्य संस्कति में टेटू का प्रचलन देख हमारे यहां भी लोग इसके दीवाने हो गए। मेले में ग्रामीण से लेकर शहरी लोग गोदना कराते देखे जा सकते हैं।