
– विवेक कुमार मिश्र
चाय होली पर
रंग भी होती और आंच भी
इस चाय में इच्छा की गुलाल और मन की तरंगें
उड़ती रहती गुलाल सी
यहां जो चाय पी जाती
उसमें रंग, गुलाल और लाली ऐसे घुले होते कि
इससे इतर कुछ और सोच ही नहीं सकते
यहां चाय ऐसे घुलती है रस और रंग में कि
उसके साथ जीवन ही पक कर तैयार हो रहा हों
यह चाय अकेले की नहीं होती
न ही अकेले के लिए बनती
होली की चाय में सब होते
जो कहीं नहीं होते कभी नहीं होते
वो सब ऐसे आ जाते कि …
वर्षों से चाय के रंग पर ही चल रहे हों
और इन सबकी चाय होली के रंग में ही पकती है
यह चाय केतली से निकलते ही
अपने भाप में भर लेती है
रंग और जिंदगी की कथा
जिसमें सब उमड़ कर आ जाते
यह जो कथा है वह यूं ही नहीं है
उसके साथ जिंदगी
अपने ही रंग , रस व अर्थ भर
जिंदगी की कथा कहती चलती हैं ।
– विवेक कुमार मिश्र
सह आचार्य हिंदी
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा
एफ -9 समृद्धि नगर स्पेशल बारां रोड कोटा -324002