सुर्ख़* फूलों की गर तमन्ना है। ख़ाक* में ख़ून को मिलाता चल।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

हौसला अपना आज़माता चल।
ऑंधियों में दीए जलाता चल।।
*
ज़ुल्मतों* के निशाॅं मिटाता चल।।
कुछ तो जुगनू सा टिमटिमाता चल।
*
टूटी कश्ती में ज़िंदगी भर दे।
अपनी पतवार को हिलाता चल।।
*
सर पे ख़ुशियों का शामियाना बुन।
इक नया आसमाॅं बनाता चल।।
*
आने वालों को रास्ता देंगे।
नक़्श* तू रेत पर बनाता चल।।
*
सुर्ख़* फूलों की गर तमन्ना है।
ख़ाक* में ख़ून को मिलाता चल।।
*
मिल ही जायेंगी मंज़िलें “अनवर”।
मुश्किलों को गले लगाता चल।।
*

ज़ुल्मतों*अंधेरों
नक़्शचिन्ह,निशाॅं सुर्ख़लाल रंग का
ख़ाक*मिट्टी

शकूर अनवर
9460851271

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