
-ग़ज़ल-
-शकूर अनवर-
जब तकब्बुर* के महल सब टूटकर रह जायेंगे।
फिर बचेगा क्या नज़र में बस खॅंडर रह जायेंगे।।
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पार जाना है जिन्हें वो कश्तियों को ठोंक लें।
डूबने के वास्ते हम बे हुनर रह जायेंगे।।
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हर क़दम पर साथ चलना वर्ना ऐसी भीड़ में।
तुम कहाॅं खो जाओगे और हम किधर रह जायेंगे।।
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जब अना* टकरा गई तो बात क्या बन पायगी।
बस कटाने के लिए जिस्मों पे सर रह जायेंगे।।
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अपनी बस्ती हादसों* से हर तरह महफ़ूज़ रख।
वर्ना सारे शहर में दो चार घर रह जायेंगे।।
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पार दरिया के तुम्हें फिरओन* क्या ले जायेगा।
नाखुदा कश्ती मुसाफ़िर डूबकर रह जायेंगे।।
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खोल दे यारब दुआओं के लिए बाबे- कुबूल*।
वर्ना मेरे सारे सजदे बे असर रह जायेंगे।।
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मत भरो “अनवर” मुहब्बत में कोई ऊॅंची उड़ान।
आतिशे-दिल* में झुलस कर बालो पर रह जायेंगे।।
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तकब्बुर*ग़ुरूर घमंड
अना*स्वाभिमान, ज़िद
हादसों*दुर्घटनाओं
फिरओन* मिस्र का एक ज़ालिम बादशाह जिसे मूसा ने चमत्कारी तरीके से फौज के सहित नील नदी में डूबो दिया था
बाबे-क़ुबूल*दुआ पूरी होने का दरवाजा
आतिशे-दिल*मुहब्बत की आग
-शकूर अनवर-