
-सुनीता करोथवाल-

बहुत खूबसूरत हो तुम
पर मेरे वाले से ईंच भर कम कातिल हैं
तुम्हारी तम्बाकू सी धुआँधार आँखें
तुम्हारी आँखों में सुल्फे की चिलम सा एक ही रंग है
और उसकी आँखें खेत के बीच बहती नदी हैं
हर बार मेरे मन को बागों सा सींचती हैं
हाँ एक बात की जलन तो है ही तुमसे
प्रेमी को तुम्हारे जैसा तो कम से कम होना ही चाहिए
जो प्रेमिका के कहने पर बढ़ा ले अपनी मूँछें
पहन ले कुरते के साथ पगड़ी
बिखर जाए मेरे चाँदी के नाड़े की आवाज पर
और थिरक ले बेपरवाह होकर
किसी पड़ोस के ब्याह में ढोलक की ढम ढम पर
समेट ले मेरे भीतर का पसरा हुआ सारा गांव
समझ ले मेरे गाए हुए सारे लोकगीत
उसे पसंद हो मेरा जंगली होना
और खेत से लौटते हुए
ले आए एक सरसों का फूल
कभी कपास की पहली गुलाबी कतरन
मेरी हथेली पर रखी जाए
गेहूँ के दिनों में कंडाई का नाजुक पीला फूल
नालियों पर उगी खट्टी मीठी
खरपतवार के जामुनी फोहों से उसकी मुट्ठी भरी हो
सिर्फ मेरे लिए
उसके हाथ पर गुदवाया हुआ हो मेले में मेरा नाम
और जिस दिन मैं जोई कंठी पहनूं
वह संदूक से मुरकियों की फरमाइश करे
मेरी चुनरी के रंग का कुरता पहन
बस जिंदगी को देहात कर दे।
सुनीता करोथवाल