
-चाँद ‘शैरी’-
मुल्क तूफाने बला की जद में है
दिल सियासतदान का मस्नद में है
अब मदारी का तमाशा छोड़ कर
आज कल वो आदमी सन्सद में है
एकता का तो दिलों में है मुक़ाम
वो कलश में है न वो गुम्बद में है
जिन्दगी भर ख़ून से सींचा जिसे
वो शजर मेरा निगाहे-बद में है
फिर है खतरे में वतन की आबरू
फिर बड़ी साज़िश कोई सरहद में है
एक जुगनू भी नहीं आता नज़र
यह अँधेरा किस बुरे मक़सद में है
चिलचिलाती धूप में ‘शेरी’ ख़याल
हट के मंजिल से किसी बरगद में है
चाँद ‘शैरी’ (कोटा)
098290-98530
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