
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
मौसमे-गुल* ने यूँ तक़दीर बनाली अब के।
चूम आया तेरी चौखट तेरी जाली अब के।।
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कुछ दीये मैं भी जलाऊॅंगा तेरी यादों के।
यूँ मनाऊॅंगा मेरे दोस्त दिवाली अब के।।
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कुछ तो बोल आज सितमगर* ये ख़मोशी कैसी।
इक दुआ बन के लगेगी तेरी गाली अब के।।
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तेरा दीदार* किसी और की झोली में गया।
लौट आया है तेरे दर का सवाली* अब के।।
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क्यूँ मेरे सर पे कोई संग* न आया इस बार।
क्या तेरे शहर ने ये रस्म उठाली अब के।।
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मेरी ऑंखों में वो अश्कों* की नदी सूख गई।
ये कटोरे भी रहे ख़ाली के ख़ाली अब के।।
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आके बैठा है वो पहलू में उदू* के “अनवर”।
दुश्मनी कैसी मेरे साथ निकाली अब के।।
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मौसमे-गुल* बसंत ऋतु बहार का मौसम
सितमगर* ज़ूल्म करने वाला कोई अपना प्यारा
दीदार*दर्शन देखना
सवाली*माॅंगने वाला भिखारी
संग*पत्थर
अश्कों*ऑंसुओं
उदू*दुश्मन प्रेमिका का दूसरा प्रेमी
शकूर अनवर
9460851271