-प्रोफेसर विवेक कुमार मिश्र-

चाय एक सांसारिक यात्रा है जहां चाय के साथ दुनिया को देखते समझते अपने ढंग से स्वाद और रस लेते हुए संसार पर विचार करते हैं । चाय पर होना सीधे-सीधे एक संसार में होना और संसार को जीते हुए संसार पर अपनी राय रखना होता है । जब आप सांसारिक यात्रा पर अपनी राय रखने चलते हैं तो एक – एक अनुभव और अनुभूति संसार को रास्ता दिखाने का काम करती है । यह बराबर देखा और अनुभव किया गया सत्य है कि चाय पर एक संसार वह होता जिसे हम जानते ही नहीं और दूसरा संसार वह होता है जिसे जानते हुए भी एक नई राय बन जाती है । चाय पर संसार एक राय के साथ आता है । यह कहा जाना ज्यादा जरूरी लगता है कि चाय के संसार को समझते हुए अपने आसपास की दुनिया और उस ऐतिहासिक सत्य को समझने की जरूरत होती है जिससे आदमी को आदमी की तरह देखा और समझा जा सके । चाय पर बराबर संसार को इस तरह देखा जाता है जैसे कि पहली बार देख रहे हों । यहां से सांसारिक यात्रा की शुरुआत होती है और संसार इस तरह सामने आ जाता है कि संसार को यदि यहां नहीं जाना और समझा तो फिर कुछ समझने की जरूरत नहीं रह जाती । चाय की दुनिया एक विस्तार से एक ऐसे संसार से जोड़ती है जिसे हम जानते तक नहीं और उस संसार के इतने करीब आ जाते हैं कि वह हमारा ही संसार हो । यहां पर आते ही एक दूसरे के बारे में जहां जानना शुरू करते हैं । यहां से चाय के रंग में संसार पूरा का पूरा आ जाता है । आप चाय पीते हैं यह काफी नहीं है । आपके साथ कौन कौन कहां कहां चाय पीता यह चाय की दुनिया के लिए आप से आप महत्वपूर्ण हो जाता है । चाय के साथ दुनिया एक दूसरे को जोड़ने का काम करती हैं । यह दुनिया अपने सांसारिक यात्रा के साथ पूरी होने और समझने के लिए चाय पर सूत्र देने का काम करती है ।
प्रोफेसर विवेक कुमार मिश्र
(चाय पर कविता संग्रह चाय, जीवन और बातें)
के बाद एक नये संग्रह फुरसतगंज वाली सुकून भरी चाय लेकर आ रहे हैं। चाय पर बातें , सामाजिक संदर्भ और जीवन की कहानियां चाय के भाप सी ही उड़ती आती हैं । जो चाय नहीं पीते उनके लिए भी चाय पर साहित्य और बातें प्रीतिकर होती हैं । यह चाय की सहजता और स्वीकृति ही है कि हर कहीं चाय पर दुनिया भर की बातें और दुनिया भर का संसार मिल जाता है ।
अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस पर चाय के विशेष संदर्भ में यह टिप्पणी।
चाय पर सौ.सवा सौ कविता लिख लेना मायने रखता है बधाई