दिल का इक़रार* मुझे था मालूम। लब पे इन्कार किये रहना था।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

लफ़्ज़* में धार किये रहना था।
शेर* तलवार किये रहना था।।
*
इश्क़ की कोई दवा भी तो नहीं।
दिल को बीमार किये रहना था।।
*
इन किनारों ने दिये हैं धोखे।
ज़ीस्त* मॅंजधार किये रहना था।।
*
हाँ मुहब्बत का तक़ाज़ा है यही।
दिल वफ़ादार किये रहना था।।
*
हम पे लाज़िम थी इनायत* की नज़र।
तुमको सरकार किये रहना था।।
*
दिल का इक़रार* मुझे था मालूम।
लब पे इन्कार किये रहना था।।
*
गिरने वाली थी जुनूॅं* की दीवार।
ख़ुद को हुशियार किये रहना था।।
*
अपनी हुरमत* तो बचाते “अनवर”।
सर पे दस्तार* किये र हना था।।
*

लफ़्ज़*शब्द
शेर*ग़ज़ल का शेर कविता
ज़ीस्त*जीवन
इनायत*मेहरबानी कृपा
इक़रार* स्वीकृति
जुनूॅं* दीवानगी
हुर्मत*इज़्ज़त
दस्तार*पगड़ी

शकूर अनवर
9460851271

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