
-लक्ष्मण सिंह-

लड़े हर पहर वो लुगाई न दे
बिना काम की हो ढुलाई न दे
पड़े तेज सर्दी अकेले हो हम
गिली ओढ़ने को रजाई न दे
लुटे ओ पिटे इश्क में भी कहीं
जमाने को पर यह दिखाई न दे
निशाँ गाल पे आशिकी में मिला
नमक की उसी पे सिकाई न दे
नसीहत मिली रात मुझको यही
करे चू चू वह चारपाई न दे
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