
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
नाम रह जायेगा बाक़ी या कहानी देखो।
वर्ना हर चीज़ तो दुनिया की है फ़ानी* देखो।।
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पार जाने के लिये हौसला बाक़ी रखना।
कम न होगी अभी दरिया की रवानी* देखो।।
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इस कड़ी धूप की शिद्दत* से न घबरा जाना।
इसके बाद आयेगी इक शाम सुहानी देखो।।
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नक़्श* जो दार* पे जाते हुए छोड़े मैंने।
बन गये हैं वही मंज़िल की निशानी देखो।।
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सिर्फ़ अल्फ़ाज़ की बंदिश* पे न जाओ लोगो।
तुम मेरे शेर के मफ़हूमो-मआनी* देखो।।
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मैने अश्कों* से बनाया है नया ताजमहल।
मेरा अंदाज़े-वफ़ा* शाहजहानी देखो।।
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लाख समझाया रक़ीबों* से न मिलना “अनवर”।
उस सितम गर* ने मगर एक न मानी देखो।।
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फ़ानी*नशवर ख़त्म होने वाली
रवानी* तेज़ बहाव
शिद्दत*तेज़ी
नक़्श *चिन्ह निशान
दार*सूली
अल्फाज़ की बंदिश*शब्दों का प्रयोग
मफ़हूमो-मआनी* भाव और अर्थ
अश्कों*ऑंसुओं
अंदाज़े-वफ़ा*प्रेम करने का तरीक़ा
रक़ीब यानी* दुश्मन प्रेमिका का दूसरा प्रेमी
सितम गर*ज़ालिम प्रेमिका
शकूर अनवर
9460851271