
-संजय चावला-
कोटा। परिपक्व लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण पहचान यह की वह कभी व्यक्ति तथा सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था को अपने देश की सांस्कृतिक चेतना तथा शिक्षा साहित्य कला पर हावी नहीं होने देता। यह बात राजस्थान साहित्य अकादमी एवं सर्जना की सहभगिता में आयोजित जनकवि जगदीश विमल गुलकंद की जन्मशताब्दी समारोह को सम्बोधित करते हुए समाजशास्त्री व वरिष्ठ साहित्यकार डा. आनंद कश्यप ने कही। उन्होंने कहा की आज साहित्यकार के सामने अपनी रचनाधर्मिता को ऊर्जस्वरित कर समाज तथा राजनीति को संस्कारित करने की सबसे बड़ी चुनैती है।

हिंदी साहित्य के प्रखर समीक्षक वरिष्ठ साहित्यकार अलवर से आये डा. जीवन सिंह मानवी ने कहा की साहित्य एवं कला सृजन बिना किसी सामाजिक सरोकार के संभव नहीं है। रचनात्मक सृजनशीलता समाज की पतनशील परिस्थितियों को बदलने के लिए सांस्कृतिक उत्प्रेरक हैं तथा समाज और सभ्यता के विकास तथा बदलाव में सृजन की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
जनकवि जगदीश विमल गुलकंद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए समारोह संयोजक वरिष्ठ जनकवि बृजेन्द्र कौशिक ने कहा की साहित्य सृजन एक सामाजिक दायित्व है. उन्होंने गुलकंद के काव्य संग्रह अग्निगंधा की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कहा की रचनाकार का कोई देश धर्म निजी समाज या परिवार नहीं होता इसलिए वह केवल मानवीय रिश्तों का पक्षधर होता है। कार्यक्रम में मौजूद अन्य रचनाकारों ने भी अपने विचार व्यक्त किये. जनकवि महेंद्र नेह ने कहा की गुलकंद मेहनतकश आवाम के साथ सदा खड़े रहने वाले कवी थे।

दिल्ली से आये उर्दू के वरिष्ठ शायर डा. फारूख बक्शी ने कोटा के रचनाकारों की गंगा जमुनी सांस्कृतिक विरासत को बेमिसाल बताते हुए समाज में नफरत फैलाने वाली साजिशों को नाकाम करने के लिए जनतांत्रिक जीवन मूल्यों को समृद्ध करने वाले साहित्य का सृजन करने का आवाहन किया. समारोह का सञ्चालन ओजस्वी कवी डा. उदयमणि कौशिक ने किया।
