
-आदित्य कुमार गुप्ता-

संसार चक्र चलता रहता
यह जीवन एक कहानी है
कब कौन यहाँ किसका होता?
सबको निज रीति निभानी है।
सँभल- सँभल कर चलो डगर,
फिसलन से पथ हैं भरे हुए ।
गिर गिर कर उठ चलना होगा,
मत रहो जगत् में डरे हुए।
जीवन का अर्थ नहीं समझे
इच्छायें मत बढ़ने देना ।
संघर्षों में खिल पुष्प सदृश,
स्वप्नों को मत मरने देना ।।1।।
लोग यही कहते दुनियां यह
सतरंगी गिरगिट की नानी।
हर ओर जगत् का खेल यही,
सब करते रहते मनमानी ।
कहते सब अपने लोग यहाँ,
पर देता कोई साथ नहीं ।
सबके ही खेल निराले हैं,
संकट में मिलता हाथ नहीं।
चहुँ ओर कपट का जाल बिछा,
ईमान नहीं चुकने देना।
जीवन दिनकर सा चमकेगा,
स्वप्नों को ना मरने देना ।।2।।
नित बाधाएं आती रहती,
संकल्पी पीछे ना हटते।
जब कोशिश करता है मानव,
बाधाओं के साये हटते।।
हर वक़्त रहे जो चौकन्ना,
वह जीवन-सागर तर जाता।
जो भीषण झंझावातों से,
डर जाता है वह मर जाता।।
पतवार थाम निज हाथों से,
जीवन-नौका तिरने देना।
बाधाओं से डर जीवन में,
स्वप्नों को ना मरने देना।।3।।
हिम्मत से लेना काम सदा,
क़िस्मत का रोना मत रोना।
नित रहो कठिन श्रम करते ही,
ना समय व्यर्थ में ही खोना।।
श्रम से ही भाग्य जगा करते,
श्रम से ही वक़्त सँवरता है।
ऊँचे शिखरों पर चढ़ता वह,
जो भी मानव श्रम करता है।।
मन की मनहर आशाओं को,
ना असमय ही झरने देना।
कर्मों के दीप जलाकर रख,
स्वप्नों को ना मरने देना।।4।।
आदित्य कुमार गुप्ता कोटा।

















