
-ग़ज़ल-
चाँद ‘शैरी’
उनको हुस्नो-शबाब कब देगा
अब्र- झीलों को आब कब देगा
जिनमें खुश्बू हो उन्सों-उल्फत की
मौसम ऐसे गुलाब कब देगा
हो गुज़र जिसका बन्द जेहनों में
वो किरन आफताब कब देगा
हो चुकी दुश्मनी की हद अब तो
दोस्ती बे हिसाब कब देगा
लोग क्यों भूखे पेटे सोते हैं
कोई इसका जवाब कब देगा
मुझको ख़य्याब जैसा इक शेरी
खूबसूरत ख़िताब कब देगा
चाँद ‘शैरी’ (कोटा)
098290-98530
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