
-संजय चावला-

कोटा। देश के जाने माने लेखक, स्तंभकार, मानवाधिकार कार्यकर्त्ता तथा राष्ट्रीय अभियान कारवां ऐ महोब्बत के संस्थापक डा. हर्ष मंदर के मंगलवार को शहर की तीन अलग अलग संस्थाओं में विभिन्न सामयिक विषयों पर व्याख्यान सत्र आयोजित हुए। राजकीय महाविद्यालय में दिलों का बंटवारा और आज का भारत, अकलंक महाविद्यालय में आज़ादी की लड़ाई के सपनो का भारत तथा इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स सभागार में संविधान, लोकतंत्र और आज की हकीक़त विषयों पर व्याख्यान हुए। तीनों संस्थाओं में लोकतान्त्रिक मूल्यों में आस्था रखने वाले बुद्धिजीवी तथा उच्च शिक्षा से जुड़े छात्र छात्राएं उपस्थित थे।
राजकीय महाविद्यालय में कार्यक्रम की अध्यक्षता रुकटा अध्यक्ष डा. रघुराज परिहार ने की तथा खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के उपाध्यक्ष पंकज मेहता मुख्या अतिथि थे। डा. हर्ष मंदर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए प्रो. संजय चावला ने कहा कि अपनी सूझ बूझ और पकड़ के कारण डा. मंदर गहराई में पैठकर केवल विश्लेषण ही नहीं करते बल्कि नई उद्भावनाओं से अपने विवेचन को विचारोत्तेजक भी बना देते हैं। अपने व्याख्यान में डा. मंदर ने गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर की सुप्रसिद्ध प्रार्थना वेअर द माईंड इज विदआउट फियर को कोट करते हुए कहा कि टैगोर ने ऐसे स्वतंत्र भारत की कल्पना की थी जहाँ भय का माहौल न हो, मस्तक गर्व से ऊंचा रहे, समाज संकीर्ण टुकड़ों में न बंटा हो, शब्दों में सत्य की गहराई हो, तर्कशीलता की स्पष्ट धारा बहती हो, पूर्वाग्रह और रूढ़ीवाद से मुक्त हो। वे मानते थे कि हमारा ईश्वर, अल्लाह मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे या चर्च में नहीं है अपितु वहां है जहाँ किसान कठोर भूमि को जोत रहा है और पथ बनाने वाला पत्थर तोड़ रहा है। उन्होंने खेद जताया कि आज के बच्चे टीवी तथा सोशल मीडिया के प्रभाव में नफरत के माहौल से घिरे हैं। स्कूलों में प्रार्थना के साथ संविधान की प्रस्तावना भी पढ़ी जानी चाहिए ताकि स्वतंत्रता के समय जिस सपनों के भारत की कल्पना हमने की थी वो विखंडित न हो पाए। हमारे संविधान की चार बुनियादों में से सबसे महत्वपूर्ण है बंधुत्व जो सभी धर्माे, जातियों, वर्ग, भाषाओँ को इन्द्रधनुष की तरह जोड़ता है। बंधुत्व का वास्तविक अर्थ है कि यदि पहलु खान या रोहित वेमुला की हत्या होती है तो मुझे भी दर्द होता है। उन्होंने कहा कि नफरत एक ऐसा ज़हरीला नशा है जिसके कारण महंगाई, बेरोज़गारी, डूबती अर्थव्यवस्था से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि भारत के हिन्दू तो बाय चांस हैं जबकि मुस्लिम बाय चोयिस हैं। उन्होंने भारत को अपनी मातृ भूमि माना और यहाँ रहना मंज़ूर किया। मुख्य अतिथि पंकज मेहता ने कहा कि आज हम अपनी मूल सर्व धर्म समभाव की संस्कृति से भटक गए हैं। अंत में शांति एवं सद्भावना मिशन के अध्यक्ष एडवोकेट अरविन्द भरद्वाज ने सभी का आभार व्यक्त किया।
अकलंक कालेज में आज़ादी की लड़ाई के सपनो का भारत विषय पर हर्ष मंदर नेे आईडिया ऑफ़ इंडिया तथा आईडिया ऑफ़ पाकिस्तान का भेद बताते हुए कहा कि पाकिस्तान यह मानता था कि एक ही धर्म के लोग समान हैं जबकि बांग्ल देश के अलग होने से यह स्पष्ट हो गया कि यह सही नहीं है जबकि भारत ने विविधता में एकता में अपने आप को सहज महसूस किया। हमारा यही रेनबो कल्चर हमें सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान बनाता है। उन्होंने बताया कि उनके परिवार ने भी विभाजन का दंश झेला है। हम जानते हैं कि धर्म आधारित हिंसा का क्या असर होता है। कुछ लोग हैं जो मजहब का उपयोग नफरत फ़ैलाने और सत्ता प्राप्ति के लिए करते हैं। उनसे हमें सावधान रहना होगा वर्ना आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ़ नहीं करेगी। उन्होंने बताया कि आश्चर्जनक किन्तु सत्य है कि धर्म के नाम पर बटवारा चाहने वाले स्वयं धार्मिक नहीं थे। जिन्ना कोई कट्टर मुसलमान नहीं थे तथा सावरकर ने स्वयं को नास्तिक कहा था। उन्होंने शिक्षकों का आवाहन किया कि नफरत के माहौल की काट शिक्षक ही छात्रों को अपनी कक्षा में दे सकते हैं।