-धीरेन्द्र राहुल-

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संसद का नया भवन बनकर तैयार है। आगामी 28 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसका उद्घाटन करेंगे। कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष कह रहा है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मर्मू देश की संवैधानिक प्रमुख हैं, इसलिए उद्घाटन भी उनके ही हाथों होना चाहिए।
लेकिन एआईएएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओवैसी कह रहे हैं कि संविधान में कार्य पालिका, न्याय पालिका और विधायिका की शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा है। वे कहते हैं कि राष्ट्रपति भी कार्यपालिका का ही एक हिस्सा है जबकि विधायिका के प्रमुख तो लोकसभाध्यक्ष यानी स्पीकर ओम बिरला हैं। नए संसद भवन का उद् घाटन तो उन्हें ही करना चाहिए। विपक्षी नेताओं की मांग के बारे में ओवैसी का कहना था कि ये लोग संविधान पढ़ते नहीं हैं। इन्हें पहले पढ़ना, फिर बोलना चाहिए।
अब इसमें तीन पक्ष हो गए है। पहला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिनका मंतव्य यह है कि नई संसद चूंकि मैंने बनवाई है, इसलिए उसका उद् घाटन भी मैं ही करूंगा। आने वाले दिनों में चुनाव भी होने वाले हैं, इसलिए इसका लाभ तो हमें ही मिलना चाहिए।
यहां पेंच यही है कि क्या मोदी विपक्ष की मांग के आगे झुकेंगें? या फिर फैसला लेंगे कि तुम समारोह आना चाहो तो आओ, फीता तो मैं ही काटूंगा।
उधर, विपक्ष एकजुट होकर कह रहा है कि अगर राष्ट्रपति से उद्घाटन नहीं करवाया तो हमारा बहिष्कार ही समझों। इधर ओवैसी कह रहे हैं कि अगर लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला से उद्घाटन नहीं करवाया तो वे समारोह में भाग ही नहीं लेंगे।
अब इस मामले में ओम बिरला और द्रौपदी मूर्म तो कुछ बोलेंगे नहीं। लेकिन आप तो बोल सकते हैं कि कौन पक्ष सही है?
मैं इस मामले में ओवैसी के साथ हूं। बंदा कानून का जानकार है। वैसे भी कानून का पलड़ा ओम बिरला के पक्ष में है। दूसरा कारण हमारे कोटा के प्रतिनिधि से उनका जायज हक नहीं छीना जाना चाहिए। हम उनके साथ है।
मेरी चिंता यह है कि समूचे विपक्ष के बिना समारोह कितना सूना सूना सा लगेगा। लोकतंत्र का नया मंदिर खाली खाली नहीं लगेगा।