राजनीतिक इच्छा शक्ति बनी बाधक अन्यथा खराब सड़कों से मिलती मुक्ति

कोटा में भी 2014-15 में केईएसएस के माध्यम से कचरा प्रबंधन के जरिए इस प्रकार की प्रक्रिया शुरू की गई थी। लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में एसएलआरएम परियोजना बीच में ही बंद कर दी गई। इस योजना के तहत प्रशिक्षित सैकड़ों युवा बेकार हो गए। लेकिन परियोजना अपनी जगह सफल है।

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-बृजेश विजयवर्गीय-

(अध्यक्ष केईएसएस)
ठोस,तरल, संसाधन प्रबंधन (एसएलआरएम) की पद्धति से जहां प्लास्टिक, पालीथीन वेस्ट को संसाधनों में बदल कर 10 साल तक नहीं टूटने वाली सड़कें बनती हैं वहीं कचरे की विकट समस्या का समाधान भी होता है। इससे नदियां, तालाब और अन्य जलाशय कचरा संग्रहण केन्द्र बनने से बचते हैं ओर स्वच्छ रहते हैं। यदि कचरा पृथक्कीकरण पर ही जोर दिया जाता तो आज सड़कों की ऐसी दुर्दशा नहीं होती। रोज दुर्घटनाओं में जान गंवाने वाले लोगों की बडी संख्या में अच्छी सडकों की वजह से जानें बचती और सरकार, प्रशासन भी शर्मिंदा नहीं होते।

बृजेश विजयवर्गीय

भारत में ही बैंगलोर में ऐसी सड़कें बनी है। अब एमएनआईटी ने भी यही सिफारिश की है। कोटा में भी 2014-15 में केईएसएस के माध्यम से कचरा प्रबंधन के जरिए इस प्रकार की प्रक्रिया शुरू की गई थी। लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में एसएलआरएम परियोजना बीच में ही बंद कर दी गई। इस योजना के तहत प्रशिक्षित सैकड़ों युवा बेकार हो गए। लेकिन परियोजना अपनी जगह सफल है।
कचरा पृथक्कीकरण मिसाइल तकनीक नहीं है। साधारण प्रयास और कुशल मानीटरिंग, जन शिक्षण के माध्यम से इस सफल बनाया जाना और इसका लाभ अम जन तक पहंुचाना संभव है। छत्तीसगढ़ की अंबिकापुर में यह पद्धति सफल हो चुकी है तो सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण। राजस्थान में इस पद्धति की सराहना तो सबने की लेकिन लागू करने का दमखम नहीं दिखाई दिया। कोटा नगर निगम ने लाखों रुपए प्रशिक्षण पर खर्च किए पर उसका सदुपयोग नहीं कर पाए। अब भी बहुत देर नहीं हुई है। नगरीय निकाय प्रशासन चाहे तो यह योजना लागू होना संभव है। इससे बार-बार टूटने वाली सड़कों से न केवल मुक्ति मिलती है बल्कि स्वच्छता का मिशन पूर्ण होता है। अदालतों की फटकार और जुर्माने से भी मुक्ति मिलती है।

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D K Sharma
D K Sharma
3 years ago

कोटा नगर निगम और UIT स्वच्छंद है। जनता की तकलीफों से इन्हें कोई सरोकार नहीं है। अनावश्यक कार्यों में पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है लेकिन टूटी फूटी सड़कों की मरम्मत करवाना इनकी प्राथमिकता नहीं है। वैसे भी अयोग्य इंजीनियर किसी मुश्किल प्रोजेक्ट को पूरा करने में असमर्थ हैं। उदाहरण के लिए सीवर पाइप लाइनों को देख लें। पिछले दस वर्षो में ये योजना पूरी नहीं हो सकी है जबकि सारी सड़के खोदी जा चुकी हैं पाइप बिछाने के लिए। ऐसी भी कॉलोनी हैं जिन में 5 साल पहले सीवर पाइप लाइन डाली गई थी। अब उन्हीं गलियों में दोबारा पाइप लाइन बिछा दी गई है। लूट मची है और किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं है।
अंधेर नगरी चौपट कर राजा, कोटा में पूर्णतया चरितार्थ हो रहा है।